Saturday, February 22, 2014

आज का श्लोक, 'स्वभावजा' / 'swabhAvajA'

आज का श्लोक,  'स्वभावजा' / 'swabhAvajA
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अध्याय 17, श्लोक 2,
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श्रीभगवान् उवाच :
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु ॥
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(त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनाम् सा स्वभावजा
सात्त्विकी राजसी च-एव तामसी च-इति तां शृणु ॥)
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’स्वभावजा’/'swabhAvaja' - पूर्व-संस्कारों के सम्मिलित फल रूपी प्राप्त हुई नैसर्गिक प्रवृत्तियाँ ।
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भावार्थ :
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा :

सभी देहधारियों को स्वभाव से प्राप्त उनकी श्रद्धा, तीन प्रकार की होती है । वह (श्रद्धा)  किस प्रकार से सात्त्विकी, राजसी अथवा तामसी होती है, उसे सुनो ।
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Chapter 17, shloka 2,
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’स्वभावजा’/'swabhAvaja' - The natural tendencies of the body-mind, one is born with.
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shrI bhagavAn uvAcha :

trividhA bhavati shraddhA
dehinAM sA swabhAvajA |
sAttvikI rAjasI chaiva
tAmasI cheti tAM shRNu ॥
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Meaning :
Lord shrikrishNa said, -
"According to the natural tendencies of the body-mind, the 'faith' associated with them is of three kinds - sAttvikI ( of harmony), rAjasika ( of passion) or of tAmasI ( of indolence)."
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