Tuesday, February 4, 2014

आज का श्लोक / हरेः / 'hareH'

आज का श्लोक  /
________________________
तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य  रूपमत्यद्भुतं हरेः ।
विस्मयो मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
--
(तत्  च संस्मृत्य संस्मृत्य  रूपम् अति-अद्भुतं हरेः ।
विस्मयः मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
--
हरेः - हरि अर्थात श्रीकृष्ण का ,
भावार्थ :
हे राजन् ! हरि के उस अति अद्भुत विश्वरूप को पुनः पुनः याद कर मुझे बारम्बार आश्चर्य हो रहा है, और मैं बार बार हर्षित हो रहा हूँ ।
--
हरेः / 'hareH', of 'Hari' > of Lord Shrikrishna,
Chapter 18/77,
tachcha sansmRtya sansmRtya
rUpamatyadbhutaM hareH |
vismayo me mahAn rAjan
hRShyAmi cha punaH punaH ||
--
(Sanjaya says to King DhRtarAShTra)
O King! Again and again I remember that most wonderful form of Lord Hari (Shrikrishna), and again and again I rejoice.
--  


No comments:

Post a Comment