आज का श्लोक /
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तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः ।
विस्मयो मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
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(तत् च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपम् अति-अद्भुतं हरेः ।
विस्मयः मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
--
हरेः - हरि अर्थात श्रीकृष्ण का ,
भावार्थ :
हे राजन् ! हरि के उस अति अद्भुत विश्वरूप को पुनः पुनः याद कर मुझे बारम्बार आश्चर्य हो रहा है, और मैं बार बार हर्षित हो रहा हूँ ।
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हरेः / 'hareH', of 'Hari' > of Lord Shrikrishna,
Chapter 18/77,
tachcha sansmRtya sansmRtya
rUpamatyadbhutaM hareH |
vismayo me mahAn rAjan
hRShyAmi cha punaH punaH ||
--
(Sanjaya says to King DhRtarAShTra)
O King! Again and again I remember that most wonderful form of Lord Hari (Shrikrishna), and again and again I rejoice.
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तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः ।
विस्मयो मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
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(तत् च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपम् अति-अद्भुतं हरेः ।
विस्मयः मे महान्-राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः ॥
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हरेः - हरि अर्थात श्रीकृष्ण का ,
भावार्थ :
हे राजन् ! हरि के उस अति अद्भुत विश्वरूप को पुनः पुनः याद कर मुझे बारम्बार आश्चर्य हो रहा है, और मैं बार बार हर्षित हो रहा हूँ ।
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हरेः / 'hareH', of 'Hari' > of Lord Shrikrishna,
Chapter 18/77,
tachcha sansmRtya sansmRtya
rUpamatyadbhutaM hareH |
vismayo me mahAn rAjan
hRShyAmi cha punaH punaH ||
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(Sanjaya says to King DhRtarAShTra)
O King! Again and again I remember that most wonderful form of Lord Hari (Shrikrishna), and again and again I rejoice.
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