Thursday, February 20, 2014

आज का श्लोक, 'स्वया' / 'swayA'

आज का श्लोक, 'स्वया'  / 'swayA'
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कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेsन्यदेवताः ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया 
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(कामैः तैः तैः हृतज्ञानाः प्रपद्यन्ते अन्यदेवताः ।
तं तं नियमम् आस्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥)
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'स्वया'  / 'swayA' -  अपनी  ( 'स्व' - 'स्वा' तृतीया विभक्ति, एकवचन, 'प्रकृति' का विशेषण-पद)
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भावार्थ :
कामनाओं से जिनके ज्ञान और विवेकबुद्धि  (राग और संसार के प्रति सुखबुद्धि से ) हरे जा चुके हैं, वे मनुष्य अपनी प्रकृति से प्रेरित होकर, उस उस नियम (संस्कार) के द्वारा नियत किए जाकर, उनसे वशीभूत हुए अपनी कामनाओं की पूर्ति के उद्देश्य से (मुझ परमेश्वर को भूलकर) अन्य अन्य देवताओं की उपासना  किया करते हैं ।
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'स्वया'  / 'swayA'
--Chapter 7, shloka 20,
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kAmastaistairhRtajnAnAH
prapadyante'nyadevatAH |
taM taM niyamamAsthAya
prakRtyA niyatAH swayA |
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'स्वया'  / 'swayA' - of oneself, one's own.
Meaning :
Because of their desire for worldly pleasures, they lose clarity of mind, forget Me, and goaded by their own inherent nature try to seek fulfillment of their wishes, desires by propitiating those other Gods.
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