Tuesday, February 25, 2014

आज का श्लोक, ’स्वतेजसा’/ 'swatejasA'

आज का श्लोक, ’स्वतेजसा’/ 'swatejasA'
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अध्याय 11, श्लोक 19,
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’स्वतेजसा’/ 'swatejasA'
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अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य-
मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् ।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं
स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ॥
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हे आदि-मध्य-अन्त-रहित, हे अनन्तबाहु, हे शशि-सूर्य-नेत्र!  मैं देख रहा हूँ कि प्रज्ज्वलित अग्नि जैसा प्रदीप्त आपका मुखमण्डल अपने तेज से समस्त विश्व को संतप्त कर रहा है ।
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’स्वतेजसा’/ 'swatejasA' - Because of Your Resplendence,
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Chapter 11, shloka 19,
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anAdimadhyAntamanantavIrya-
manantabAhuM shashisUryanetraM |
pashyAmi tvAM dIptahutAshanavaktraM
swatejasA vishvamidaM tapantaM ||
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O One without a beginning, a middle or an end ! O One of potential and arms infinite ! O One with The Moon and The Sun for the eyes ! I see Your Face Resplendent like a burning Fire, scorching this whole world with your Radiance.
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