आज का श्लोक / 'हरन्ति' / 'haranti'
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अध्याय 2, श्लोक ६०,
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यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥
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(यततः हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥)
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हरन्ति - बरबस खींच लेती हैं ।
भावार्थ :
हे कौन्तेय (अर्जुन )! अभ्यास में संलग्न विचारशील मनुष्य की भी इन्द्रियाँ, उसके न चाहते हुए भी बरबस ही उसके विवेक-वैराग्ययुक्त मन को व्याकुल और विचलित कर विषयों की ओर आकृष्ट कर देती हैं।
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'हरन्ति' / 'haranti' > take away forcibly.
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yatato hyapi kaunteya
puruShasya vipashchitaH |
indriyANi pramAthIni
haranti prasabhaM manaH ||
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O Kaunteya (Arjuna!) Though a man of understanding, when such a wise one tries to control them, the senses (sense-organs) forcibly take his mind away towards the pleasures one is used to enjoy from them.
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अध्याय 2, श्लोक ६०,
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यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥
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(यततः हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥)
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हरन्ति - बरबस खींच लेती हैं ।
भावार्थ :
हे कौन्तेय (अर्जुन )! अभ्यास में संलग्न विचारशील मनुष्य की भी इन्द्रियाँ, उसके न चाहते हुए भी बरबस ही उसके विवेक-वैराग्ययुक्त मन को व्याकुल और विचलित कर विषयों की ओर आकृष्ट कर देती हैं।
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'हरन्ति' / 'haranti' > take away forcibly.
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yatato hyapi kaunteya
puruShasya vipashchitaH |
indriyANi pramAthIni
haranti prasabhaM manaH ||
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O Kaunteya (Arjuna!) Though a man of understanding, when such a wise one tries to control them, the senses (sense-organs) forcibly take his mind away towards the pleasures one is used to enjoy from them.
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