Monday, February 17, 2014

आज का श्लोक, 'स्वल्पं' / 'swalpaM'

आज का श्लोक, 'स्वल्पं' / 'swalpaM'
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अध्याय 2, श्लोक 40,
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'स्वल्पं' / 'swalpaM' - थोड़ा सा,
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नेहाभिक्रमनाशोsति प्रत्यवायो न विद्यते ।
स्वल्पमपि अस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥
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(न-इह अभिक्रम-नाशः अस्ति प्रत्यवायः न विद्यते ।
स्वल्पम् अपि अस्य धर्मस्य त्रायते महतः भयात् ॥ --
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भावार्थ :
इस धर्म अर्थात् पुरुषार्थ* में एक बार संलग्न हो जाने के बाद मनुष्य इस मार्ग से कभी भटकता नहीं, बल्कि श्रेयस् की प्राप्ति होने तक निरंतर प्रयासरत रहता है । इस पुरुषार्थ का प्रारंभ है और लक्ष्य भी है जिस तक पहुँचने के लिए किए जाने वाले प्रयास अनवरत जारी रहता है । इसलिए धर्म अर्थात् पुरुषार्थ* का अल्पमात्र भी बड़े से बड़े भय से भी रक्षा करता है ।
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(टिप्पणी : इस श्लोक से पूर्व का श्लोक ठीक वह बिंदु है जो 'सांख्य-योग' और 'ज्ञान-योग' की अवधारणा के बीच की विभाजन-रेखा है । गीता के अध्याय 2, श्लोक 39 में कहा गया है -
देखिए अध्याय 2, श्लोक 39)
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'स्वल्पं' / 'swalpaM' - a very small quantity / amount of,
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Chapter 2, shloka 40,
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nehAbhikramanAsho'sti
pratyavAyo na vidyate |
swalpaM-api asya dharmasya
trAyate mahato bhayAt ||
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Meaning :
Once this path of 'dharma'* is owned, there is no chance of failure, there is no loss of the progress one has done, there are no hurdles on the way and even a little of this path saves one from even the greatest dangers.
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*Note :
In this shloka the term 'dharmasya' means 'of the endeavor'; In veda, 'dharma' is one of the four major goals of a life that lead one to the ultimate perfection.
'dharma', 'artha'. 'kAma', and 'mokSha'.
These four are the four 'puruShArtha' one needs to attempt, if one desires to reach the ultimate meaning, significance and goal of life.
'dharma' is therefore no mythology, rituals, customs and religious practices, 'dharma'  is what takes one to the Ultimate Truth, Reality of Self and Being. 'artha' is needed to run a healthy and affluent life. 'kAma' is needed for fulfilling the purpose of progeny, and not for 'pleasure'. 'mokSha' is 'Liberation' from ignorance about 'self' and 'Self' and also from sorrow and bondage.
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