Wednesday, February 19, 2014

आज का श्लोक, 'स्वर्गद्वारं' / 'swargadwAraM'

आज का श्लोक, 'स्वर्गद्वारं' /  'swargadwAraM'
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अध्याय 2, श्लोक 32,
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यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्  ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥
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(यदृच्छया  च उपपन्नं स्वर्गद्वारम् अपावृतम्  ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धम्-ईदृशम् ॥
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'स्वर्गद्वारं' /  'swargadwAraM- स्वर्ग के प्रवेश-द्वार
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भावार्थ :
हे पार्थ (अर्जुन)! इस प्रकार से अनायास प्राप्त होनेवाला युद्ध का अवसर तो क्षत्रिय के लिए मानों संयोग से और अकस्मात् ही अपने लिए खुले साक्षात्  स्वर्ग के प्रवेश-द्वार होते हैं, जिसमें अपने कर्तव्य का निर्वाह अर्थात् युद्ध करते हुए क्षत्रिय सुखपूर्वक  स्वर्ग की प्राप्ति कर लेते हैं ।
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'स्वर्गद्वारं' /  'swargadwAraM'
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Chapter 2, shloka 32,
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yadRchchhayA chopapannaM
swargadwAraM-apAvRtaM |
sukhinaH kShatriyAH pArtha
labhante yuddhamIdRshaM ||
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'स्वर्गद्वारं' /  'swargadwAraM' - The gates to heaven .
Meaning :
O pArtha (Arjuna)! Fortunate is the warrior (kshatriya) who gets such an opportunity by his sheer luck, if he has a chance to fight in the battle for a right cause only. Because the war is imposed upon him, and not that he has imposed this on helpless enemies and so fighting for some petty selfish cause only.
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