Wednesday, February 5, 2014

आज का श्लोक / 'हरति' / 'harati'

आज का श्लोक / 'हरति' / 'harati'
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इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोsनुविधीयते ।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि  ॥
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(इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनः अनुविधीयते ।
तद् अस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥ )
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'हरति' / 'harati' - हरण कर लेती है ( जैसे वायु पालदार नौका को खींच लेती है ।)
भावार्थ :
इंद्रियों के विषयों में रत होते हुए जो / जिसका मन उनमें संलग्न होता है, उसे उसकी इन्द्रियाँ वैसे ही भोगों में बरबस खींच ले जाती हैं जैसे पानी में (पालदार) नौका को बहती वायु अपनी दिशा में ले जाती है ।
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'हरति' / 'harati'. - pulls forcibly / carries away.
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Chapter 2, shloka 67,
indriyANAM hi charatAM
yanmano'nuvidhIyate |
tadasya harati prajnAM
vAyrnAvamivAmbhasi ||
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Meaning : Just as the winds carry away a boat with sails, the mind of one who's senses are engaged with the objects is forcibly drawn towards them.
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