Wednesday, February 26, 2014

आज का श्लोक, ’स्वचक्षुषा’/ 'swachakShuShA'

आज का श्लोक ’स्वचक्षुषा’/ 'swachakShuShA'
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’स्वचक्षुषा’/ 'swachakShuShA' -अपने नेत्रों से,
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अध्याय 11,  श्लोक 8,
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न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम् ॥
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( न तू मां शक्यसे द्रष्टुम् अनेन एव स्वचक्षुषा
 दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे  योगम्-ऐश्वरम् ॥)
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भावार्थ :
तुम (जिनसे इस जगत् को देखा करते हो), अपने इन स्थूल नेत्रों से मुझे (मेरे यथार्थ-स्वरूप को) नहीं देख सकोगे । मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को तुम देख सको इसके लिए मैं तुम्हें ये दिव्य नेत्र प्रदान करता हूँ ।
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(टिप्पणी : स्पष्ट है कि अर्जुन द्वारा किया गया विराट-स्वरूप दर्शन न तो कोई सम्मोहन था, और न भौतिक-स्तर पर दिखलाई देनेवाला कोई ऐसा दृश्य, जिसे वे या उनकी तरह का कोई दूसरा मनुष्य अपने भौतिक नेत्रों से देख सकता हो । योग-शक्ति के माध्यम से अर्जुन की व्यक्तिगत चेतना के लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी ईश्वरीय चेतना के द्वार खोल दिए थे, बस । तात्पर्य यह कि अर्जुन ’चेतना’ के उस तल पर था जहाँ वह सबमें विद्यमान ’ईश्वर’ से एकाकार था ।)
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’स्वचक्षुषा’/ 'swachakShuShA'
Chapter 11, shloka 8,
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na tu mAM shakyase draShTu-
manenaiva swachakShuShA |
divyaM dadAmi te chakShuH
pashya me yogamaishvaraM ||
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’स्वचक्षुषा’/ 'swachakShuShA' - (see) by your own eyes.
Meaning :
But to see Me, these your physical eyes are of no help. So I give you this divine sight. Behold My Majestic opulence, My power of yoga.
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