Friday, February 7, 2014

आज का श्लोक / 'हन्तारम्' / 'hantAraM'

आज का श्लोक / 'हन्तारम्' / 'hantAraM'
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'हन्तारम्' / 'hantAraM' - 'हन्' = मारना, हन्तारम् - मारनेवाला ।
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अध्याय 2, श्लोक 19,
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य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥
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(य एनम्  वेत्ति हन्तारम्  यः च ऐनम्  मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतः न अयम्  हन्ति न हन्यते ॥)
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भावार्थ :
जो इस (आत्मा) को मारनेवाला मानता है, तथा जो इस (आत्मा) को मारा जानेवाला  मानता है, वे दोनों यह नहीं जानते कि यह (आत्मा) न तो किसी को मारती है, और न ही इस (आत्मा) को कोई मार सकता है।
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'हन्तारम्' / 'hantAraM'
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Chapter 2, shloka 19,
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ya enaM vetti hantAraM
yashchainaM manyate hataM |
ubhau tau na vijAnIto
nAyaM hanti na hanyate ||
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Meaning :
Neither one who believes this 'Self' (Atman) is the slayer, nor one who believes this 'Self'(Atman) is slain know the truth. For the 'Self' (Atman) slays not nor is slain.
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