आज का श्लोक, ’स्याम्’ / 'syAm'
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’स्याम्’ / 'syAm' - (मैं) हो जाऊँगा ।
( 'होने' के अर्थ में, ’अस्’ धातु, ’होने’ के अर्थ में,
-’विधिलिङ्’ उत्तम पुरुष एकवचन ।)
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अध्याय 3, श्लोक 24,
--
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् ।
सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥
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(उत्सीदेयुः इमे लोकाः न कुर्याम् कर्म चेत्-अहम् ।
सङ्करस्य च कर्ता स्याम् उपहन्याम् इमाः प्रजाः ॥)
--
भावार्थ :
यदि मैं कर्म न करूँ (तो) ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाएँ और मैं सङ्करता का करनेवाला तथा इस प्रकार इस समस्त प्रजा को विनष्ट करनेवाला हो जाऊँ ।
--
अध्याय 18, श्लोक 70,
--
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः ।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः ॥
--
(अध्येष्यते च यः इमम् धर्म्यम् संवादम्-आवयोः ।
ज्ञानयज्ञेन तेन-अहम् इष्टः स्याम्-इति मे मतिः ॥)
--
भावार्थ :
हमारे मध्य हुए इस संवादरूपी धर्मप्रेरक गीताशास्त्र का जो भी मनुष्य अध्ययन करेगा, उसके द्वारा किए जानेवाले इस ’ज्ञानयज्ञ’ से वह मेरी अभीष्ट पूजा करेगा, ऐसा मेरा मत है ।
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’स्याम्’ / 'syAm' - (I) will be.
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Chapter 3, shloka 24,
--
utsIdeyurime lokA
na kuryAM karma chedahaM |
sankarasya cha kartA syAM-
upahanyAM-imAH prajAH ||
--
Meaning :
If I cease to work, these worlds will perish and I shall be the cause of confusion and destruction.
--
Chapter 18, shloka 70,
--
adhyeShyate cha ya imaM
dharmyaM saMvAdamAvayoH |
jnAnayajnena tenAhaM-
iShTaH syAm-iti me matiH ||
--
Meaning :
Whosoever shall study this sacred dialogue of ours shall be worshiping Me, by means of the sacrifice known as 'jnAna-yajna' (-the way of Intelligence).
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’स्याम्’ / 'syAm' - (मैं) हो जाऊँगा ।
( 'होने' के अर्थ में, ’अस्’ धातु, ’होने’ के अर्थ में,
-’विधिलिङ्’ उत्तम पुरुष एकवचन ।)
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अध्याय 3, श्लोक 24,
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उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् ।
सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥
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(उत्सीदेयुः इमे लोकाः न कुर्याम् कर्म चेत्-अहम् ।
सङ्करस्य च कर्ता स्याम् उपहन्याम् इमाः प्रजाः ॥)
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भावार्थ :
यदि मैं कर्म न करूँ (तो) ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाएँ और मैं सङ्करता का करनेवाला तथा इस प्रकार इस समस्त प्रजा को विनष्ट करनेवाला हो जाऊँ ।
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अध्याय 18, श्लोक 70,
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अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः ।
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः ॥
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(अध्येष्यते च यः इमम् धर्म्यम् संवादम्-आवयोः ।
ज्ञानयज्ञेन तेन-अहम् इष्टः स्याम्-इति मे मतिः ॥)
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भावार्थ :
हमारे मध्य हुए इस संवादरूपी धर्मप्रेरक गीताशास्त्र का जो भी मनुष्य अध्ययन करेगा, उसके द्वारा किए जानेवाले इस ’ज्ञानयज्ञ’ से वह मेरी अभीष्ट पूजा करेगा, ऐसा मेरा मत है ।
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Chapter 3, shloka 24,
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utsIdeyurime lokA
na kuryAM karma chedahaM |
sankarasya cha kartA syAM-
upahanyAM-imAH prajAH ||
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Meaning :
If I cease to work, these worlds will perish and I shall be the cause of confusion and destruction.
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Chapter 18, shloka 70,
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adhyeShyate cha ya imaM
dharmyaM saMvAdamAvayoH |
jnAnayajnena tenAhaM-
iShTaH syAm-iti me matiH ||
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Meaning :
Whosoever shall study this sacred dialogue of ours shall be worshiping Me, by means of the sacrifice known as 'jnAna-yajna' (-the way of Intelligence).
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