Tuesday, June 24, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वयोनिषु’ / ’sarvayoniṣu’

आज का श्लोक,  ’सर्वयोनिषु’ / ’sarvayoniṣu’
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’सर्वयोनिषु’ / ’sarvayoniṣu’ - समस्त योनियों में,

अध्याय 14, श्लोक 4,

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥
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(सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासाम् ब्रह्म महत् योनिः अहम् बीजप्रदः पिता ॥)
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भावार्थ :
हे कौन्तेय (कुन्तीपुत्र अर्जुन)! समस्त योनियों में जितनी भी मूर्तियाँ (अनेक रूपाकृतियाँ) उत्पन्न होती हैं, उन सबकी महत् योनि, सबका आदिकारण प्रकृति अर्थात् महत्-ब्रह्म ही है (जैसा कि पिछले श्लोक में कहा गया था), जिसे मैं ही बीज प्रदान करता हूँ और इस प्रकार से मैं ही उनका पिता हूँ ।
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’सर्वयोनिषु’ / ’sarvayoniṣu’ - In all species of all creatures,

Chapter 14,  śloka 4

sarvayoniṣu kaunteya
mūrtayaḥ sambhavanti yāḥ |
tāsāṃ brahma mahadyonir-
ahaṃ bījapradaḥ pitā ||
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(sarvayoniṣu kaunteya
mūrtayaḥ sambhavanti yāḥ |
tāsām brahma mahat yoniḥ
aham bījapradaḥ pitā ||)
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Meaning :
This prakṛti / mahat-brahma is the mahat yoni  -Great mother, that conceives the seed of All the beings that are born in innumerable different body-forms. And I AM The Father, That provides the seed.
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