Saturday, June 28, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वदेहिनाम्’ / ’sarvadehinām’

आज का श्लोक,
’सर्वदेहिनाम्’ / ’sarvadehinām’ 
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’सर्वदेहिनाम्’ / ’sarvadehinām’ - सभी देहधारियों का,

अध्याय 14, श्लोक 8,

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥
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(तमः तु अज्ञानजम् विद्धि मोहनम् सर्वदेहिनाम्
प्रमाद आलस्यनिद्राभिः तत् निबध्नाति भारत ॥)
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भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! तमोगुण को, जो समस्त देहधारियों के चित्त को मोहित करता है, उसे तो अज्ञान से उत्पन्न जानो । और वह (तमोगुण) उन्हें प्रमाद, आलस्य एवं निद्रा जैसी वृत्तियों से बाँधता है ।

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’सर्वदेहिनाम्’ / ’sarvadehinām’ - of all creatures,

Chapter 14, śloka 8,

tamastvajñānajaṃ viddhi
mohanaṃ sarvadehinām |
pramādālasyanidrābhis-
tannibadhnāti bhārata ||
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( tamaḥ tu ajñānajam viddhi
mohanam sarvadehinām |
pramāda-ālasya-nidrābhiḥ
tat nibadhnāti bhārata ||)
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Meaning :
O bhārata (arjuna)! Know well that tamoguṇa, (the attribute of inertia) in all the creatures, is caused by the (inherent) ignorance. And binds the mind through the tendencies (vṛtti-s) of distraction, indolence and drowsiness.
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