Wednesday, June 11, 2014

आज का श्लोक, ’सहयज्ञाः ’ / ’sahayajñāḥ’

आज का श्लोक,  ’सहयज्ञाः  ’ /  ’sahayajñāḥ’ 
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’सहयज्ञाः’ /  ’sahayajñāḥ’  - यज्ञों के सहित तथा यज्ञों के माध्यम से,

अध्याय 3, श्लोक 10,

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥
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(सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरा उवाच प्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वम् एषः वः अस्तु इष्टकामधुक् ।)
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भावार्थ :
प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञोंसहित प्रजाओं की रचना करने के पश्चात् उनसे कहा कि इस (यज्ञ के अनुष्ठान) के द्वारा तुम लोग वृद्धि को प्राप्त होओ और यह (यज्ञ) तुम्हें इच्छित भोग प्रदान करनेवाला हो ।
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’सहयज्ञाः’ / ’sahayajñāḥ’ - Along-with and by means of sacrifice (yajña),
 
Chapter 3, śloka 10,

sahayajñāḥ prajāḥ sṛṣṭvā
purovāca prajāpatiḥ |
anena prasaviṣyadhvam-
eṣa vo:'stviṣṭakāmadhuk ||
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(sahayajñāḥ prajāḥ sṛṣṭvā
purā uvāca prajāpatiḥ |
anena prasaviṣyadhvam
eṣaḥ vaḥ astu iṣṭakāmadhuk |)
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Meaning :
At the beginning of the Creation (kalpa), The Creator, Lord prajāpati brahmā created sacrifices / yajña-s, and through sacrifice / yajña, the human-beings and all other creatures. Then He told them "By performing this (yajña), may you prosper and multiply, May this (yajña) yield the the desired enjoyments you seek."
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