आज का श्लोक, ’सर्वभावेन’ / ’sarvabhāvena’
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’सर्वभावेन’ / ’sarvabhāvena’ - सम्पूर्ण हृदय से,
अध्याय 15, श्लोक 19,
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥
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(यः माम् एवम् असम्मूढः जानाति पुरुषोत्तमम् ।
सः सर्ववित्-भजति माम् सर्वभावेन भारत ॥)
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भावार्थ :
मूढता से रहित निर्मल बुद्धियुक्त हुआ जो मनुष्य (ज्ञानी) मुझको ही तत्त्वतः मेरे पुरुषोत्तम स्वरूप से जानता है, वह अनायास ही सभी प्रकार से मुझे जानकर मेरा अनुगामी होकर मुझे ही अनन्य भाव से भजता है ।
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अध्याय 18, श्लोक 62,
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तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥
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(तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्-प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥)
--
भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! अपने सम्पूर्ण हृदय से उस परमेश्वर की ही शरण में जाओ । उसकी कृपा से तुम्हें शान्ति तथा सनातन परम धाम प्राप्त होगा ।
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’सर्वभावेन’ / ’sarvabhāvena’ - dedicating one-self to Me with whole heart.
Chapter 15, श्लोक 19,
yo māmevamasammūḍho
jānāti puruṣottamam |
sa sarvavidbhajati māṃ
sarvabhāvena bhārata ||
--
(yaḥ mām evam asammūḍhaḥ
jānāti puruṣottamam |
saḥ sarvavit-bhajati mām
sarvabhāvena bhārata ||)
--
Meaning :
One who is free from delusion, such a man of wisdom, - a sage, who knows all and everything, knows Me as the Supreme Being, He alone worships Me in all respects and always with his whole being.
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’सर्वभावेन’ / ’sarvabhāvena’ - सम्पूर्ण हृदय से,
अध्याय 15, श्लोक 19,
यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥
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(यः माम् एवम् असम्मूढः जानाति पुरुषोत्तमम् ।
सः सर्ववित्-भजति माम् सर्वभावेन भारत ॥)
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भावार्थ :
मूढता से रहित निर्मल बुद्धियुक्त हुआ जो मनुष्य (ज्ञानी) मुझको ही तत्त्वतः मेरे पुरुषोत्तम स्वरूप से जानता है, वह अनायास ही सभी प्रकार से मुझे जानकर मेरा अनुगामी होकर मुझे ही अनन्य भाव से भजता है ।
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अध्याय 18, श्लोक 62,
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तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥
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(तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्-प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥)
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भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! अपने सम्पूर्ण हृदय से उस परमेश्वर की ही शरण में जाओ । उसकी कृपा से तुम्हें शान्ति तथा सनातन परम धाम प्राप्त होगा ।
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Chapter 15, श्लोक 19,
yo māmevamasammūḍho
jānāti puruṣottamam |
sa sarvavidbhajati māṃ
sarvabhāvena bhārata ||
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(yaḥ mām evam asammūḍhaḥ
jānāti puruṣottamam |
saḥ sarvavit-bhajati mām
sarvabhāvena bhārata ||)
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Meaning :
One who is free from delusion, such a man of wisdom, - a sage, who knows all and everything, knows Me as the Supreme Being, He alone worships Me in all respects and always with his whole being.
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Chapter 18, śloka 62,
tameva śaraṇaṃ gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tatprasādātparāṃ śāntiṃ
sthānaṃ prāpsyasi śāśvatam ||
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(tam eva śaraṇam gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tat-prasādāt parām śāntim
sthānam prāpsyasi śāśvatam ||)
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Meaning :
Therefore, with all your heart, seek shelter in Him alone. Through His grace, you shall attain the abode that is bliss supreme and peace eternal.
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