Monday, June 30, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वतःश्रुतिमत्’ / ’sarvataḥśrutimat’

आज का श्लोक,
’सर्वतःश्रुतिमत्’ / ’sarvataḥśrutimat’
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’सर्वतःश्रुतिमत्’ / ’sarvataḥśrutimat’  - सब दिशाओं में  श्रवण (कान) हैं जिसके,

अध्याय 13, श्लोक 13,
सर्वतःपाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतःश्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥
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(सर्वतःपाणिपादम् तत् सर्वतः अक्षिशिरोमुखम् ।
सर्वतःश्रुतिमत् लोके सर्वम् आवृत्य तिष्ठति ॥
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भावार्थ :
वह (ब्रह्म) सब ओर हाथ-पैरवाला, सब ओर नेत्र, सिर तथा मुखवाला, सब ओर कानवाला है, तथा सबको व्याप्त करते हुए स्थित है । इसे और ठीक से समझने के लिए इस अध्याय 13 का अगला श्लोक क्रमांक 14 देखें ।
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टिप्पणी :
इस श्लोक का तात्पर्य समझने के लिए हम सूर्य का उदाहरण ले सकते हैं । उपनिषद् में कहा है, : सूर्यो आत्मा जगतः । सूर्य की किरणों का विस्तार दिग्-दिगन्त तक है, किरणें जो सूर्य के हाथ, पैर, नेत्र एवम् कान भी हैं । भगवान् भास्कर सब को स्पर्श करते हैं, सब का अधिष्ठान हैं, सब को देखते हैं और अपने रश्मिरूपी श्रोत्रों / श्रुतियों से सब को सुनते भी हैं ।
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’सर्वतःश्रुतिमत्’ / ’sarvataḥśrutimat’ - One having His ears / attention towards all and every direction.

Chapter 13, śloka 13,
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sarvataḥpāṇipādaṃ tat-
sarvato:'kṣiśiromukham |
sarvataḥśrutimalloke
sarvamāvṛtya tiṣṭhati ||
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(sarvataḥpāṇipādam tat
sarvataḥ akṣiśiromukham |
sarvataḥśrutimat loke
sarvam āvṛtya tiṣṭhati ||
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Meaning :
(This brahman / tat) has His hands / arms, feet, eyes, ears, heads, and faces, enveloping the Whole existence. And in this way He is ever everywhere.
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Note :
We can see the example of the Sun. His rays reach everywhere, they are his hands / arms, feet, eyes, ears, heads, and faces, through which He touches, gives support to, looks at, listens to and shows Himself to everything and every being.
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