आज का श्लोक, ’सर्वपापैः’ / ’sarvapāpaiḥ’
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’सर्वपापैः’ / ’sarvapāpaiḥ’ - समस्त पापों से,
अध्याय 10, श्लोक 3,
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
--
(यः माम् अजम् अनादि च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः सः मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
--
भावार्थ :
जो मुझ जन्म-रहित, अनादि तथा लोकों के परमेश्वर को तत्वतः जानता है, ऐसा निर्दोष बुद्धियुक्त मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है ।
--
’सर्वपापैः’ / ’sarvapāpaiḥ’ - from all sin,
Chapter 10, śloka 3,
yo māmajamanādiṃ ca
vetti lokamaheśvaram |
asammūḍhaḥ sa martyeṣu
sarvapāpaiḥ pramucyate ||
--
(yaḥ mām ajam anādi ca
vetti lokamaheśvaram |
asammūḍhaḥ saḥ martyeṣu
sarvapāpaiḥ pramucyate ||
--
Meaning :
One who with perfect clarity and without delusion, knows Me, the birth-less (one never born, because Is Ever so) and beginning-less (timeless) principle as The Supreme Lord of all creatures, with becomes free from all sin.
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’सर्वपापैः’ / ’sarvapāpaiḥ’ - समस्त पापों से,
अध्याय 10, श्लोक 3,
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
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(यः माम् अजम् अनादि च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असम्मूढः सः मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥
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भावार्थ :
जो मुझ जन्म-रहित, अनादि तथा लोकों के परमेश्वर को तत्वतः जानता है, ऐसा निर्दोष बुद्धियुक्त मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है ।
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’सर्वपापैः’ / ’sarvapāpaiḥ’ - from all sin,
Chapter 10, śloka 3,
yo māmajamanādiṃ ca
vetti lokamaheśvaram |
asammūḍhaḥ sa martyeṣu
sarvapāpaiḥ pramucyate ||
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(yaḥ mām ajam anādi ca
vetti lokamaheśvaram |
asammūḍhaḥ saḥ martyeṣu
sarvapāpaiḥ pramucyate ||
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Meaning :
One who with perfect clarity and without delusion, knows Me, the birth-less (one never born, because Is Ever so) and beginning-less (timeless) principle as The Supreme Lord of all creatures, with becomes free from all sin.
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