आज का श्लोक, ’सहस्रबाहो’ / ’sahasrabāho’
______________________________________
’सहस्रबाहो’ / ’sahasrabāho’ - (हे) सहस्र भुजाओं से युक्त ! (सम्बोधनवाची)
अध्याय 11, श्लोक 46,
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त-
मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव ।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥
--
(किरीटिनम् गदिनम् चक्रहस्तम्-
इच्छामि त्वाम् द्रष्टुम् अहम् तथा एव ।
तेन एव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥)
--
भावार्थ :
जिनके सिर पर मुकुट है, एक हाथ में गदा तथा दूसरे में चक्र है, मैं आपको आपके उस रूप में देखने का इच्छुक हूँ । (जैसा पहले था) आपके उसी चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन का अभिलाषी हूँ मैं, हे सहस्रभुजाओं से युक्त, हे विश्वमूर्ति ! आप मुझे उसी रूप में दर्शन दीजिए !
--
’सहस्रबाहो’ / ’sahasrabāho’ -The Universal God in a form with 1000 arms,
(Figuratively, Who performs a thousand tasks.)
Chapter 11, śloka 46 ,
kirīṭinaṃ gadinaṃ cakrahasta-
micchāmi tvāṃ draṣṭumahaṃ tathaiva |
tenaiva rūpeṇa caturbhujena
sahasrabāho bhava viśvamūrte ||
--
(kirīṭinam gadinam cakrahastam-
icchāmi tvām draṣṭum aham tathā eva |
tena eva rūpeṇa caturbhujena
sahasrabāho bhava viśvamūrte ||)
--
Meaning :
I wish to see your form that is wearing a crown, armed with a club (gada) and a discus (cakra) in hand as before. Take up Your that very four-armed form again, I pray to You, (sahasrabāho) O thousand-armed One!! (viśvamūrte) O One with all the forms!
--
______________________________________
’सहस्रबाहो’ / ’sahasrabāho’ - (हे) सहस्र भुजाओं से युक्त ! (सम्बोधनवाची)
अध्याय 11, श्लोक 46,
किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त-
मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव ।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥
--
(किरीटिनम् गदिनम् चक्रहस्तम्-
इच्छामि त्वाम् द्रष्टुम् अहम् तथा एव ।
तेन एव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥)
--
भावार्थ :
जिनके सिर पर मुकुट है, एक हाथ में गदा तथा दूसरे में चक्र है, मैं आपको आपके उस रूप में देखने का इच्छुक हूँ । (जैसा पहले था) आपके उसी चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन का अभिलाषी हूँ मैं, हे सहस्रभुजाओं से युक्त, हे विश्वमूर्ति ! आप मुझे उसी रूप में दर्शन दीजिए !
--
’सहस्रबाहो’ / ’sahasrabāho’ -The Universal God in a form with 1000 arms,
(Figuratively, Who performs a thousand tasks.)
Chapter 11, śloka 46 ,
kirīṭinaṃ gadinaṃ cakrahasta-
micchāmi tvāṃ draṣṭumahaṃ tathaiva |
tenaiva rūpeṇa caturbhujena
sahasrabāho bhava viśvamūrte ||
--
(kirīṭinam gadinam cakrahastam-
icchāmi tvām draṣṭum aham tathā eva |
tena eva rūpeṇa caturbhujena
sahasrabāho bhava viśvamūrte ||)
--
Meaning :
I wish to see your form that is wearing a crown, armed with a club (gada) and a discus (cakra) in hand as before. Take up Your that very four-armed form again, I pray to You, (sahasrabāho) O thousand-armed One!! (viśvamūrte) O One with all the forms!
--
No comments:
Post a Comment