आज का श्लोक,
’सर्वत्रगः’ / ’sarvatragaḥ’
___________________
’सर्वत्रगः’ / ’sarvatragaḥ’ - सर्वत्रगामी, सर्वव्यापी,
अध्याय 9, श्लोक 6,
यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥
--
(यथा आकाशस्थितः नित्यम् वायुः सर्वत्रगः महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानि इति उपधारय ॥)
--
भावार्थ :
इसे इस तरह से समझो, - जैसे आकाश में स्थित वायु सर्वत्र गतिशील होते हुए भी आकाश में ही अवस्थित रहती है, वैसे ही सब भूत (जड, चेतन प्रकृति) मुझमें ही स्थित रहते हैं ।
--
’सर्वत्रगः’ / ’sarvatragaḥ’ - reaching everywhere, all-pervading,
Chapter 9, ślōka 6,
yathākāśasthito nityaṃ
vāyuḥ sarvatrago mahān |
tathā sarvāṇi bhūtāni
matsthānītyupadhāraya ||
--
(yathā ākāśasthitaḥ nityam
vāyuḥ sarvatragaḥ mahān |
tathā sarvāṇi bhūtāni
matsthāni iti upadhāraya ||)
--
Meaning :
Just as the Great air (vāyu) moves freely everywhere within the space, All the beings quite so, abide ever within Me only.
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’सर्वत्रगः’ / ’sarvatragaḥ’
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’सर्वत्रगः’ / ’sarvatragaḥ’ - सर्वत्रगामी, सर्वव्यापी,
अध्याय 9, श्लोक 6,
यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥
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(यथा आकाशस्थितः नित्यम् वायुः सर्वत्रगः महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानि इति उपधारय ॥)
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भावार्थ :
इसे इस तरह से समझो, - जैसे आकाश में स्थित वायु सर्वत्र गतिशील होते हुए भी आकाश में ही अवस्थित रहती है, वैसे ही सब भूत (जड, चेतन प्रकृति) मुझमें ही स्थित रहते हैं ।
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’सर्वत्रगः’ / ’sarvatragaḥ’ - reaching everywhere, all-pervading,
Chapter 9, ślōka 6,
yathākāśasthito nityaṃ
vāyuḥ sarvatrago mahān |
tathā sarvāṇi bhūtāni
matsthānītyupadhāraya ||
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(yathā ākāśasthitaḥ nityam
vāyuḥ sarvatragaḥ mahān |
tathā sarvāṇi bhūtāni
matsthāni iti upadhāraya ||)
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Meaning :
Just as the Great air (vāyu) moves freely everywhere within the space, All the beings quite so, abide ever within Me only.
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