आज का श्लोक, ’सर्वथा’ / ’sarvathā’
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’सर्वथा’ / ’sarvathā’ - पूर्णतः, सब प्रकार से,
अध्याय 6, श्लोक 31,
सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥
--
(सर्वभूतस्थितम् यो माम् भजति एकत्वम्-आस्थितः ।
सर्वथा वर्तमानः अपि सः योगी मयि वर्तते ॥)
--
भावार्थ :
जो मुझ एकमेव चेतन तत्त्व को सब प्राणियों में समान रूप से अवस्थित जानकर अपने आपको उस तत्त्व से अभिन्न जानता है, ऐसा योगी बाह्यतः सब प्रकार से एक सामान्य मनुष्य की भाँति व्यवहार करता हुआ भी पूर्णतः मुझमें ही व्यवहारशील होता है ।
--
अध्याय 13, श्लोक 23,
य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥
--
(यः एवम् वेत्ति पुरुषम् प्रकृतिम् च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानः अपि न सः भूयः अभिजायते ॥)
--
भावार्थ :
जो पुरुष को और प्रकृति को उसके गुणों के साथ इस प्रकार से जान लेता है, सब प्रकार से सारे व्यवहार करते हुए भी वह पुनः फिर जन्म नहीं लेता ।
--
’सर्वथा’ / ’sarvathā’ - in all ways, in every way,
Chapter 6, śloka 31,
sarvabhūtasthitaṃ yo māṃ
bhajatyekatvamāsthitaḥ |
sarvathā vartamāno:'pi
sa yogī mayi vartate ||
--
(sarvabhūtasthitam yo mām
bhajati ekatvam-āsthitaḥ |
sarvathā vartamānaḥ api
sa yogī mayi vartate ||)
--
Meaning :
One who knows Me (The One and the only Consciousness) present in all beings, and shares Me in this way by realizing his identity with Me, though behaves as an ordinary human being, he ever does so with abiding in Me alone.
--
Chapter 13, śloka 23,
ya evaṃ vetti puruṣaṃ
prakṛtiṃ ca guṇaiḥ saha |
sarvathā vartamāno:'pi
na sa bhūyo:'bhijāyate ||
--
(yaḥ evam vetti puruṣam
prakṛtim ca guṇaiḥ saha |
sarvathā vartamānaḥ api
na saḥ bhūyaḥ abhijāyate ||)
--
Meaning :
One who knows puruṣa, the prakṛti, and its 3 guṇa(s) / (attributes) though engaged outwardly in the worldly matters has no next birth.
--
Note :
puruṣa - The Consciousness-principle, - The Noumenal,
prakṛti -The Manifestation-principle, - The Phenomenal,
guṇa(s) - The 3 aspects of The Manifestation-principle,
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’सर्वथा’ / ’sarvathā’ - पूर्णतः, सब प्रकार से,
अध्याय 6, श्लोक 31,
सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥
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(सर्वभूतस्थितम् यो माम् भजति एकत्वम्-आस्थितः ।
सर्वथा वर्तमानः अपि सः योगी मयि वर्तते ॥)
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भावार्थ :
जो मुझ एकमेव चेतन तत्त्व को सब प्राणियों में समान रूप से अवस्थित जानकर अपने आपको उस तत्त्व से अभिन्न जानता है, ऐसा योगी बाह्यतः सब प्रकार से एक सामान्य मनुष्य की भाँति व्यवहार करता हुआ भी पूर्णतः मुझमें ही व्यवहारशील होता है ।
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अध्याय 13, श्लोक 23,
य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥
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(यः एवम् वेत्ति पुरुषम् प्रकृतिम् च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानः अपि न सः भूयः अभिजायते ॥)
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भावार्थ :
जो पुरुष को और प्रकृति को उसके गुणों के साथ इस प्रकार से जान लेता है, सब प्रकार से सारे व्यवहार करते हुए भी वह पुनः फिर जन्म नहीं लेता ।
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’सर्वथा’ / ’sarvathā’ - in all ways, in every way,
Chapter 6, śloka 31,
sarvabhūtasthitaṃ yo māṃ
bhajatyekatvamāsthitaḥ |
sarvathā vartamāno:'pi
sa yogī mayi vartate ||
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(sarvabhūtasthitam yo mām
bhajati ekatvam-āsthitaḥ |
sarvathā vartamānaḥ api
sa yogī mayi vartate ||)
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Meaning :
One who knows Me (The One and the only Consciousness) present in all beings, and shares Me in this way by realizing his identity with Me, though behaves as an ordinary human being, he ever does so with abiding in Me alone.
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Chapter 13, śloka 23,
ya evaṃ vetti puruṣaṃ
prakṛtiṃ ca guṇaiḥ saha |
sarvathā vartamāno:'pi
na sa bhūyo:'bhijāyate ||
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(yaḥ evam vetti puruṣam
prakṛtim ca guṇaiḥ saha |
sarvathā vartamānaḥ api
na saḥ bhūyaḥ abhijāyate ||)
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Meaning :
One who knows puruṣa, the prakṛti, and its 3 guṇa(s) / (attributes) though engaged outwardly in the worldly matters has no next birth.
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Note :
puruṣa - The Consciousness-principle, - The Noumenal,
prakṛti -The Manifestation-principle, - The Phenomenal,
guṇa(s) - The 3 aspects of The Manifestation-principle,
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