आज का श्लोक,
’सर्वारम्भपरित्यागी’ / ’sarvārambhaparityāgī’
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’सर्वारम्भपरित्यागी’ / ’sarvārambhaparityāgī’- जो कर्तृत्व-बुद्धि रूपी भ्रम से मुक्त हो चुका है ।
अध्याय 12, श्लोक 16,
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः ।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥
--
(अनपेक्षः शुचिः दक्षः उदासीनः गतव्यथः ।
सर्व-आरम्भ-परित्यागी यः मद्भक्तः सः मे प्रियः ॥)
--
भावार्थ :
जो किसी भी आकाङ्क्षा से रहित, बाहर-भीतर की शुद्धता के प्रति सजग, पक्षपात से रहित है, जिसकी व्यथाएँ विलीन हो चुकी हैं, जो कर्तृत्व ('मैं कर्ता हूँ' - इस प्रकार की) बुद्धि / आग्रह से ग्रस्त नहीं है, ऐसा मेरा भक्त, मुझे प्रिय है ।
--
अध्याय 14, श्लोक 25,
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः ।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते ॥
--
(मान-अपमानयोः तुल्यः तुल्यः मित्र-अरि-पक्षयोः ।
सर्व-आरम्भ-परित्यागी गुणातीतः सः उच्यते ॥)
--
भावार्थ :
जो मान और अपमान होने की स्थिति में समान रूप से अविचलित है, और इसी प्रकार से मित्रों और शत्रुओं के साथ भी समभाव से स्थित है, सम्पूर्ण कर्मों के प्रारम्भ से ही कर्तृत्व के अभिमान ( ’मैं कर्ता हूँ’, -इस भावना) से रहित है, वह गुणों से अतीत कहा जाता है ।
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’सर्वारम्भपरित्यागी’ / ’sarvārambhaparityāgī’- One who is free from the illusion : 'I do' / 'I don't do',
Chapter 12, śloka 16,
anapekṣaḥ śucirdakṣa
udāsīno gatavyathaḥ |
sarvārambhaparityāgī
yo madbhaktaḥ sa me priyaḥ ||
--
(anapekṣaḥ śuciḥ dakṣaḥ
udāsīnaḥ gatavyathaḥ |
sarva-ārambha-parityāgī
yaḥ madbhaktaḥ saḥ me priyaḥ ||)
--
Meaning :
One who expects nothing, pure and clean in life, heart and mind, careful, unattached, has overcome misery, takes no initiative in any enterprise (since has got rid of the sense, 'I do, and actions are done by me'.), such a devotee is beloved to Me.
--
Chapter 14, śloka 25,
mānāpamānayostulyas-
tulyo mitrāripakṣayoḥ |
sarvārambhaparityāgī
guṇātītaḥ sa ucyate ||
--
(māna-apamānayoḥ tulyaḥ
tulyaḥ mitra-ari-pakṣayoḥ |
sarva-ārambha-parityāgī
guṇātītaḥ saḥ ucyate ||)
--
Meaning :
One who is unaffected and same in honor and dishonor, who is unaffected and same in friends and enemies, and one who from the very beginning of an action has given up the sense ; 'I do / I don't do', is said to have transcended the three guṇas / (attributes).
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’सर्वारम्भपरित्यागी’ / ’sarvārambhaparityāgī’
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’सर्वारम्भपरित्यागी’ / ’sarvārambhaparityāgī’- जो कर्तृत्व-बुद्धि रूपी भ्रम से मुक्त हो चुका है ।
अध्याय 12, श्लोक 16,
अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः ।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥
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(अनपेक्षः शुचिः दक्षः उदासीनः गतव्यथः ।
सर्व-आरम्भ-परित्यागी यः मद्भक्तः सः मे प्रियः ॥)
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भावार्थ :
जो किसी भी आकाङ्क्षा से रहित, बाहर-भीतर की शुद्धता के प्रति सजग, पक्षपात से रहित है, जिसकी व्यथाएँ विलीन हो चुकी हैं, जो कर्तृत्व ('मैं कर्ता हूँ' - इस प्रकार की) बुद्धि / आग्रह से ग्रस्त नहीं है, ऐसा मेरा भक्त, मुझे प्रिय है ।
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अध्याय 14, श्लोक 25,
मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः ।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते ॥
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(मान-अपमानयोः तुल्यः तुल्यः मित्र-अरि-पक्षयोः ।
सर्व-आरम्भ-परित्यागी गुणातीतः सः उच्यते ॥)
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भावार्थ :
जो मान और अपमान होने की स्थिति में समान रूप से अविचलित है, और इसी प्रकार से मित्रों और शत्रुओं के साथ भी समभाव से स्थित है, सम्पूर्ण कर्मों के प्रारम्भ से ही कर्तृत्व के अभिमान ( ’मैं कर्ता हूँ’, -इस भावना) से रहित है, वह गुणों से अतीत कहा जाता है ।
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’सर्वारम्भपरित्यागी’ / ’sarvārambhaparityāgī’- One who is free from the illusion : 'I do' / 'I don't do',
Chapter 12, śloka 16,
anapekṣaḥ śucirdakṣa
udāsīno gatavyathaḥ |
sarvārambhaparityāgī
yo madbhaktaḥ sa me priyaḥ ||
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(anapekṣaḥ śuciḥ dakṣaḥ
udāsīnaḥ gatavyathaḥ |
sarva-ārambha-parityāgī
yaḥ madbhaktaḥ saḥ me priyaḥ ||)
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Meaning :
One who expects nothing, pure and clean in life, heart and mind, careful, unattached, has overcome misery, takes no initiative in any enterprise (since has got rid of the sense, 'I do, and actions are done by me'.), such a devotee is beloved to Me.
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Chapter 14, śloka 25,
mānāpamānayostulyas-
tulyo mitrāripakṣayoḥ |
sarvārambhaparityāgī
guṇātītaḥ sa ucyate ||
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(māna-apamānayoḥ tulyaḥ
tulyaḥ mitra-ari-pakṣayoḥ |
sarva-ārambha-parityāgī
guṇātītaḥ saḥ ucyate ||)
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Meaning :
One who is unaffected and same in honor and dishonor, who is unaffected and same in friends and enemies, and one who from the very beginning of an action has given up the sense ; 'I do / I don't do', is said to have transcended the three guṇas / (attributes).
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