Friday, June 27, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वपापेभ्यः’ / ’sarvapāpebhyaḥ’

आज का श्लोक,
’सर्वपापेभ्यः’ / ’sarvapāpebhyaḥ’
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’सर्वपापेभ्यः’ / ’sarvapāpebhyaḥ’ - समस्त पापों से,

अध्याय 18, श्लोक 66,

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
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(सर्वधर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरण व्रज ।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यः मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥)
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भावार्थ :
सम्पूर्ण धर्मों अर्थात् मन की प्रवृत्तिरूपी भिन्न-भिन्न धर्मों को / मानसिक ऊहापोह को त्यागकर मुझ एक परमात्मा की शरण में आओ । मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो ।
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’सर्वपापेभ्यः’ / ’sarvapāpebhyaḥ’ - from all sins,

Chapter 18, śloka 66,

sarvadharmānparityajya
māmekaṃ śaraṇaṃ vraja |
ahaṃ tvā sarvapāpebhyo 
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||
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(sarvadharmān parityajya
mām ekam śaraṇa vraja |
aham tvā sarvapāpebhyaḥ 
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||)
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Put aside all the different tendencies of mind (vṛtti-s), come to Me, take shelter in Me. I shall liberate you from all sin, Grieve not.
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