Wednesday, June 4, 2014

आज का श्लोक, ’संदृश्यन्ते’ / ’saṃdṛśyante’,

आज का श्लोक,  ’संदृश्यन्ते’ / ’saṃdṛśyante’
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’संदृश्यन्ते’ / ’saṃdṛśyante’ - दिखलाई दे रहे हैं ।

अध्याय 11, श्लोक 27,

वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति
दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु
सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः ॥
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(वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति
दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचित्-विलग्नाः दशनान्तरेषु
संदृश्यन्ते चूर्णितैः उत्तमाङ्गैः ॥)
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भावार्थ :
वे आपके विकराल दाढ़ों वाले भयानक मुखों में तेजी से प्रविष्ट  हो रहे हैं । कई तो उनके चूर्ण होते सिरों सहित, आपके दाँतों के बीच में पड़े दिखलाई दे रहे हैं ।

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’संदृश्यन्ते’ / ’saṃdṛśyante’  - are seen,

Chapter 11, śloka 27,

vaktrāṇi te tvaramāṇā viśanti
daṃṣṭrākarālāni bhayānakāni |
kecidvilagnā daśanāntareṣu
sandṛśyante cūrṇitairuttamāṅgaiḥ ||
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(vaktrāṇi te tvāmāṇā viśanti
daṃṣṭrākarālāni bhayānakāni |
kecit-vilagnāḥ daśanāntareṣu
saṃdṛśyante cūrṇitaiḥ uttamāṅgaiḥ ||)
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Meaning :
Rapidly entering your ferocious mouths, where they are seen with their heads crushed by your sharp fierce jaws (and teeth), while some clinging in between the teeth.
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