Friday, June 20, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वहरः’ / ’sarvaharaḥ’

आज का श्लोक, ’सर्वहरः’ / ’sarvaharaḥ’  
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’सर्वहरः’ / ’sarvaharaḥ’ - मृत्यु, काल,


अध्याय 10, श्लोक 34,

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् ।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥
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(मृत्युः सर्वहरः च अहम् उद्भवः च भविष्यताम् ।
कीर्तिः श्रीः वाक् च नारीणाम् स्मृतिः मेधा धृतिः क्षमा ॥)
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भावार्थ :
मैं मृत्यु हूँ जो सब-कुछ अर्थात् प्राणों और जीवन को भी हर लेती है, तथा मैं उद्भव हूँ  जो उत्पन्न होनेवालों की उत्पत्ति का हेतु हूँ । तथा कीर्ति, श्री,  वाक्, स्मृति धृति, तथा क्षमा अदि के स्त्रीवाचक रूपों में जिसे जाना जाता है, वह भी मैं हूँ ।

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’सर्वहरः’ / ’sarvaharaḥ’ - Death, end,

Chapter 10, śloka 34,

mṛtyuḥ sarvaharaścāham-
udbhavaśca bhaviṣyatām |
kīrtiḥ śrīrvākca nārīṇāṃ
smṛtirmedhā dhṛtiḥ kṣamā ||
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(mṛtyuḥ sarvaharaḥ ca aham
udbhavaḥ ca bhaviṣyatām |
kīrtiḥ śrīḥ vāk ca nārīṇāṃ
smṛtiḥ medhā dhṛtiḥ kṣamā ||)
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Meaning :
I am the Death that takes away every-thing, and I am the cause of all that would manifest. Glory, Opulence and affluence, the sound primordial, the memory, the Intelligence, the stamina and the potential, -all these feminine aspects (of the Brahman).
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