Wednesday, June 18, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वः’ / ’sarvaḥ’

आज का श्लोक, ’सर्वः’ / ’sarvaḥ’ 
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’सर्वः’ / ’sarvaḥ’- सब, सम्पूर्ण,

अध्याय 3, श्लोक 5,

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
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(न हि कश्चित् क्षणम् अपि जातु तिष्ठति अकर्मकृत् ।
कार्यते हि अवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैः गुणैः ॥)
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भावार्थ :
ऐसा कोई एक क्षण भी कभी नहीं होता जब कोई बिना कर्म किए रह सके । सारा अस्तित्व ही प्रकृति से उत्पन्न तीन गुणों के माध्यम से बाध्य होकर कर्म में प्रवृत्त रहता है ।
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अध्याय 11, श्लोक 40,

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते
नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं
सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः
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नमः पुरस्तात् अथ पृष्ठतः ते
नमः अस्तु ते सर्वतः एव सर्व ।
अनन्तवीर्य अमितविक्रमः त्वम्
सर्वम् समाप्नोषि ततः असि सर्वः
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भावार्थ :
हे अनन्तसामर्थ्यवान् ! आपको आगे से तथा पीछे से भी नमस्कार । आपके लिए सब ओर से ही प्रणाम हो, हे सर्वस्व ! हे अनन्त पराक्रमशाली आप सम्पूर्ण संसार को व्याप्त किए हुए हैं, इसलिए आप ही सर्वरूप, सब-कुछ हैं ।
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टिप्पणी : उपरोक्त श्लोक में पहले आधे भाग में ’सर्व’ पद का प्रयोग संबोधनवाची है, -’हे सर्व!’ के अर्थ में ।
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’सर्वः’ / ’sarvaḥ’ - totality, all (singular, nominative, masculine gender)

Chapter 3, śloka 5,

na hi kaścitkṣaṇamapi
jātu tiṣṭhatyakarmakṛt |
kāryate hyavaśaḥ karma
sarvaḥ prakṛtijairguṇaiḥ ||
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(na hi kaścit kṣaṇam api
jātu tiṣṭhati akarmakṛt |
kāryate hi avaśaḥ karma
sarvaḥ prakṛtijaiḥ guṇaiḥ ||)
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Meaning :
There is never even a single moment when one could keep away from action (karma) . Forced by the three attributes (guṇa-s) born of nature (prakṛti) the whole existence is always bound to perform action (karma).
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Chapter 11, śloka 40,

namaḥ purastādatha pṛṣṭhataste
namo:'stu te sarvata eva sarva |
anantavīryāmitavikramastvaṃ
sarvaṃ samāpnoṣi tato:'si sarvaḥ ||
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namaḥ purastāt atha pṛṣṭhataḥ te
namaḥ astu te sarvataḥ eva sarva |
anantavīrya amitavikramaḥ tvam
sarvam samāpnoṣi tataḥ asi sarvaḥ ||
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Meaning :
Obeisance to You from the front, Obeisance to You from the back, obeisance to You from all the sides. You are Omnipresent, and All. O Supreme! You are valor infinite and strength infallible! You pervade All, ...You Are All!!
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Note : The term 'sarva' in the first half of the above  śloka 40, is in the vocative sense, used to address / call some-one.
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