Monday, June 9, 2014

आज का श्लोक, ’सङ्कल्पप्रभवान् ’ / ’saṅkalpaprabhavān’,

आज का श्लोक,
’सङ्कल्पप्रभवान् ’ /  ’saṅkalpaprabhavān’ 
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’सङ्कल्पप्रभवान् ’ /  ’saṅkalpaprabhavān’ - संकल्प से उत्पन्न होनेवाली,

अध्याय 6, श्लोक 24,

सङ्कल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः ।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः ॥
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(सङ्कल्पप्रभवान् कामान् त्यक्त्वा सर्वान् अशेषतः ।
मनसा-एव-इन्द्रियग्रामम् विनियम्य समन्ततः ॥)
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भावार्थ :
संकल्प से उत्पन्न होनेवाली सम्पूर्ण कामनाओं को निःशेष रूप से त्यागकर, मन के द्वारा इन्द्रियों के समुदाय को सभी विषयों की ओर जाने से भलीभाँति रोककर,  ...
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टिप्पणी 1 :
इस श्लोक को अधिक अच्छी तरह से समझने के लिए अध्याय 2 के श्लोक 62 का सन्दर्भ उपयोगी है।
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’सङ्कल्पप्रभवान् ’ /  ’saṅkalpaprabhavān’  - desires born of thought,
Chapter 6, śloka 24,
saṅkalpaprabhavānkāmāṃ-
styaktvā sarvānaśeṣataḥ |
manasaivendriyagrāmaṃ
viniyamya samantataḥ ||
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(saṅkalpaprabhavān kāmān
tyaktvā sarvān aśeṣataḥ |
manasā-eva-indriyagrāmam
viniyamya samantataḥ ||)
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Meaning :
Giving up completely all the desires born of thought, and controlling with the help of mind (awareness), all the senses from going outward towards their objects, ...
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Note :
It will be helpful to refer to śloka 62 of Chapter 2, to understand this better, how the desires are born of thought? 

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