Monday, March 3, 2014

आज का श्लोक, ’स्मृता’ / 'smRtA'

आज का श्लोक ’स्मृता’ / 'smRtA'
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’स्मृता’ / 'smRtA' - स्मरण की जाती है ।
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अध्याय  6, श्लोक 19,
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यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः ॥
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(यथा दीपः निवातस्थः न इङ्गते सा उपमा स्मृता
योगिनः यतचित्तस्य युञ्जतः योगम्-आत्मनः ॥)
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जैसे वायु से सुरक्षित स्थान में दीपक की लौ अकम्पित रहती है, वह उपमा योगी के चित्तरूपी लौ के लिए उदाहरण की तरह स्मरणीय है, क्योंकि  अभ्यासरत योगी का चित्त जब परमात्मा के ध्यान में रम जाता है तो इसी प्रकार से निश्चल होता है ।
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’स्मृता’ / 'smRtA' - is remembered .
Chapter 6, shloka 19,
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yathA dIpo nivAtastho nengate sopamA smRtA |
yogino yatachittasya yunjato yogamAtmanaH ||
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Meaning :
Protected from the wind, the flame of a lamp does not flicker. This simile is quite appropriate and may be remembered to describe the state of the mind of a yogi, who practices yoga keeping his attention fixed on the Self.
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