Saturday, July 5, 2014

आज का श्लोक, ’समाहितः’ / ’samāhitaḥ’

आज का श्लोक,
’समाहितः’ / ’samāhitaḥ’
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’समाहितः’ / ’samāhitaḥ’ - डूबे हुए मन वाला, निमग्न, जिसका चित्त निमज्जित है,

अध्याय 6, श्लोक 7,

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ॥
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(जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ॥)
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भावार्थ : जिसने अपने बुद्धि, अन्तःकरण, इन्द्रियों आदि को शुद्ध और संयमित कर लिया है, और जिसका चित्त अत्यन्त शान्त होने से शीत तथा गर्मी, सुख एवं दुःख, मान और अपमान आदि द्वन्द्वों के बीच भी परमात्मा में समाहित रहता है,
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’समाहितः’ / ’samāhitaḥ’ - absorbed, merged,

Chapter 6, śloka 7,

jitātmanaḥ praśāntasya
paramātmā samāhitaḥ |
śītoṣṇasukhaduḥkheṣu
tathā mānāpamānayoḥ ||
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(jitātmanaḥ praśāntasya
paramātmā samāhitaḥ |
śītoṣṇasukhaduḥkheṣu
tathā mānāpamānayoḥ ||)
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Meaning :
One such a great soul, who has control over his body, mind, and senses, who is in deep peace, such a one with his mind absorbed in the Supreme, ever merged in the Self, stays calm even amidst the conditions like cold or heat, pain or pleasure, and praise or disdain.
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Note :
The word 'paramātmā' here translates better as 'a great soul'.
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