Monday, July 7, 2014

आज का श्लोक, ’समदर्शिनः’ / ’samadarśinaḥ’

आज का श्लोक,
’समदर्शिनः’ /  ’samadarśinaḥ’  
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’समदर्शिनः’ /  ’samadarśinaḥ’  - समान दृष्टि से देखनेवाले,

अध्याय 5, श्लोक 18,
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विद्याविनयसंपन्ने  ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः
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(विद्याविनयसंपन्ने  ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥)
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भावार्थ :
तत्ववेत्ता विद्याविनय से संपन्न ब्राह्मण में,  गौओं, हाथियों, श्वानों तथा श्वपचों (कुत्ते का मांस खानेवाले), सभी में समान रूप से विद्यमान उसी एकमेव चैतन्य परब्रह्म को देखते हैं ।
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’समदर्शिनः’ /  ’samadarśinaḥ’  - those who see in the same manner,

Chapter 5,  śloka 18,

vidyāvinayasaṃpanne
brāhmaṇe gavi hastini |
śuni caiva śvapāke ca
paṇḍitāḥ samadarśinaḥ ||
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(vidyāvinayasaṃpanne
brāhmaṇe gavi hastini |
śuni caiva śvapāke ca
paṇḍitāḥ samadarśinaḥ ||)
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Meaning :
A truly wise one who has known Reality / 'Brahman' /'Self' sees the same in them all. In a learned well-behaved brāhmaṇa, in a cow, elephant, dog and an outcast (who feeds on dogs).
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