Friday, July 4, 2014

आज का श्लोक, ’समुद्रम्’ / ’samudram’

आज का श्लोक,
’समुद्रम्’ / ’samudram’
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’समुद्रम्’ / ’samudram’ - समुद्र, सागर,

अध्याय 2, श्लोक 70,
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आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् ।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥
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(आपूर्यमाणम्-अचलप्रतिष्ठम् समुद्रम् आपः प्रविशन्ति यद्वत् ।
तद्वत् कामाः यम् प्रविशन्ति सर्वे सः शान्तिम् आप्नोति न कामकामी ॥)
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भावार्थ :
जैसे सब ओर से परिपूर्ण अचल और अपने-आप में सुस्थिर समुद्र में भिन्न भिन्न स्रोतों से आनेवाली सारी नदियाँ समा जाती हैं और वह यथावत् अविचलित ही रहता है, उसी प्रकार विभिन्न कामनाएँ जिस मनुष्य को (उसकी आत्मा से) बाहर न खींचती हुई, उसमें ही समाहित हो जाती हैं, वही मनुष्य शान्ति प्राप्त कर लेता है, न कि वह जिसका चित्त विभिन्न कामनाओं से आकर्षित हुआ इधर उधर भटकता रहता है ।
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अध्याय 11, श्लोक 28,

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः
समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीरा
विशन्ति वक्ताण्यभिज्वलन्ति ॥
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(यथा नदीनाम् बहवः अम्बुवेगाः
समुद्रम् एव अभिमुखाः द्रवन्ति ।
तथा तव अमी नरलोकवीराः
विशन्ति वक्त्राणि अभिज्वलन्ति ॥
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भावार्थ : जैसे नदियों के अनेक जल-प्रवाह अनायास ही समुद्र की दिशा में ही दौड़ते हैं, वैसे ही वे मनुष्यलोक के वीर भी आपके मुखों में प्रवेश कर रहे हैं ।
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टिप्पणी :
मनुष्यलोक के वे वीर, जो क्षात्रधर्म का निर्वाह करते हुए युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त कर लेते हैं, उनकी वैयक्तिक चेतना ईश्वरीय (श्रीकृष्ण)-चेतना में
लीन हो जाती है ।
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’समुद्रम्’ / ’samudram’ - ocean,

Chapter 2, śloka 70,
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āpūryamāṇamacalapratiṣṭhaṃ
samudramāpaḥ praviśanti yadvat |
tadvatkāmā yaṃ praviśanti sarve
sa śāntimāpnoti na kāmakāmī ||
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(āpūryamāṇam-acalapratiṣṭham
samudram āpaḥ praviśanti yadvat |
tadvat kāmāḥ yam praviśanti sarve
saḥ śāntim āpnoti na kāmakāmī ||)
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Meaning : Just as, the waters coming from all the directions enter and merge into the ocean, and the ocean stays steady and unaffected, quite so, only the one who is not affected by the desires that come to and merge into his mind wins the state of peace. And not the one, who keeps thinking of and indulging in desires.
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Chapter 11, śloka 28,

yathā nadīnāṃ bahavo:'mbuvegāḥ
samudramevābhimukhā dravanti |
tathā tavāmī naralokavīrā
viśanti vaktāṇyabhijvalanti ||
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(yathā nadīnām bahavaḥ ambuvegāḥ
samudram eva abhimukhāḥ dravanti |
tathā tava amī naralokavīrāḥ
viśanti vaktrāṇi abhijvalanti ||
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Meaning :
The individual consciousness (personal identity with a name and form) of those valiant warriors who lay down their lives while carrying out their legitimate duties (kṣātradharma) at the battle field, merges into Your own Divine Consciousness O Lord!, just like the waters flowing in the various rivers are attracted by and run forcibly towards the ocean.
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