Friday, July 4, 2014

आज का श्लोक, ’समुपाश्रितः’ / ’samupāśritaḥ’

आज का श्लोक,
’समुपाश्रितः’ / ’samupāśritaḥ’ 
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’समुपाश्रितः’ / ’samupāśritaḥ’ - भली प्रकार से स्थिर हुआ,

अध्याय 18, श्लोक 52,

विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः ।
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः ॥
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(विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः ।
ध्यानयोगपरः नित्यम् वैराग्यम् समुपाश्रितः ॥)
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भावार्थ : एकान्त, शान्त, स्वच्छ, और कोलाहल से रहित स्थान में रहनेवाला, हलका और नियमित आहार लेनेवाला, वाणी, शरीर और मन आदि को संयमित रखनेवाला, ध्यानयोग में सर्वदा तत्पर, और वैराग्य में दृढता से सुस्थिर, ...
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’समुपाश्रितः’ / ’samupāśritaḥ’ - having firm support of,

Chapter 18, śloka 52,

viviktasevī laghvāśī
yatavākkāyamānasaḥ |
dhyānayogaparo nityaṃ
vairāgyaṃ samupāśritaḥ ||
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(viviktasevī laghvāśī
yatavākkāyamānasaḥ |
dhyānayogaparaḥ nityam
vairāgyam samupāśritaḥ ||)
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Meaning :
(The earnest seeker...) living at a solitary place away from noise and worldly people, taking light, moderate and sāttvika food, having control over the speech, body and mind, devoted to the yoga of attention (dhyānayoga), cultivating aptitude of dispassion ...
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