आज का श्लोक,
’समुपस्थितम्’ / ’samupasthitam’
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’समुपस्थितम्’ / ’samupasthitam’ - प्रस्तुत, प्राप्त हुआ, समक्ष,
अध्याय 1, श्लोक 28,
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कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ।
अर्जुन उवाच -
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितं ॥
--
(कृपया परया आविष्टः विषीदन् इदम् अब्रवीत् ।
दृष्ट्वा इमम् स्वजनम् कृष्ण युयुत्सुम् समुपस्थितम् ॥)
--
भावार्थ :
उनके प्रति अत्यन्त करुणा-विहवल होकर, शोक करते हुए, (अर्जुन ने) ऐसा कहा ।
अर्जुन ने कहा -
युद्ध में मेरे समक्ष उपस्थित अपने इन स्वजनों को देखकर हे कृष्ण !...
--
अध्याय 2, श्लोक 2,
श्रीभगवानुवाच -
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यहुश्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥
--
(कुतः त्वा कश्मलम् इदम् विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टम् अस्वर्ग्यम् अकीर्तिकरम् अर्जुन ॥)
--
भावार्थ :
भगवान् श्रीकृष्ण बोले :
हे अर्जुन! इस कठिन समय और स्थान पर तुम्हारे चित्त में यह मोहबुद्धि जो कहाँ से / कैसे उठी, जो न तो श्रेष्ठ पुरुषों के लिए आचरण किए जाने योग्य है, न स्वर्ग को देनेवाली है, और न उत्तम कीर्ति का ही हेतु है ?
--
’समुपस्थितम्’ / ’samupasthitam’ - arrived, came before us, is here.
Chapter 1, śloka 28,
kṛpayā parayāviṣṭo
viṣīdannidamabravīt |
arjuna uvāca -
dṛṣṭvemaṃ svajanaṃ kṛṣṇa
yuyutsuṃ samupasthitaṃ ||
--
(kṛpayā parayā āviṣṭaḥ
viṣīdan idam abravīt |
dṛṣṭvā imam svajanam kṛṣṇa
yuyutsum samupasthitam ||)
--
Meaning :
Seeing all his very own dear friends and relatives ready to fight before him, he was filled with deep remorse and with heavy heart said :
O kṛṣṇa! seeing all these relatives and friends arrayed for battle, ...
--
Chapter 2, śloka 2,
śrībhagavānuvāca -
kutastvā kaśmalamidaṃ
viṣame samupasthitam |
anāryahuśṭamasvargya
makīrtikaramarjuna ||
--
(kutaḥ tvā kaśmalam idam
viṣame samupasthitam |
anāryajuṣṭam asvargyam
akīrtikaram arjuna ||)
--
Meaning :
bhagavān śrīkṛṣṇa said :
O arjuna! Where-from came this attachment to you, at this hour of peril? It is not fitting to the noble, it will yield you not heaven nor to glory.
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’समुपस्थितम्’ / ’samupasthitam’
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’समुपस्थितम्’ / ’samupasthitam’ - प्रस्तुत, प्राप्त हुआ, समक्ष,
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कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ।
अर्जुन उवाच -
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितं ॥
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(कृपया परया आविष्टः विषीदन् इदम् अब्रवीत् ।
दृष्ट्वा इमम् स्वजनम् कृष्ण युयुत्सुम् समुपस्थितम् ॥)
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भावार्थ :
उनके प्रति अत्यन्त करुणा-विहवल होकर, शोक करते हुए, (अर्जुन ने) ऐसा कहा ।
अर्जुन ने कहा -
युद्ध में मेरे समक्ष उपस्थित अपने इन स्वजनों को देखकर हे कृष्ण !...
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अध्याय 2, श्लोक 2,
श्रीभगवानुवाच -
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यहुश्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥
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(कुतः त्वा कश्मलम् इदम् विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टम् अस्वर्ग्यम् अकीर्तिकरम् अर्जुन ॥)
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भावार्थ :
भगवान् श्रीकृष्ण बोले :
हे अर्जुन! इस कठिन समय और स्थान पर तुम्हारे चित्त में यह मोहबुद्धि जो कहाँ से / कैसे उठी, जो न तो श्रेष्ठ पुरुषों के लिए आचरण किए जाने योग्य है, न स्वर्ग को देनेवाली है, और न उत्तम कीर्ति का ही हेतु है ?
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’समुपस्थितम्’ / ’samupasthitam’ - arrived, came before us, is here.
Chapter 1, śloka 28,
kṛpayā parayāviṣṭo
viṣīdannidamabravīt |
arjuna uvāca -
dṛṣṭvemaṃ svajanaṃ kṛṣṇa
yuyutsuṃ samupasthitaṃ ||
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(kṛpayā parayā āviṣṭaḥ
viṣīdan idam abravīt |
dṛṣṭvā imam svajanam kṛṣṇa
yuyutsum samupasthitam ||)
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Meaning :
Seeing all his very own dear friends and relatives ready to fight before him, he was filled with deep remorse and with heavy heart said :
O kṛṣṇa! seeing all these relatives and friends arrayed for battle, ...
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Chapter 2, śloka 2,
śrībhagavānuvāca -
kutastvā kaśmalamidaṃ
viṣame samupasthitam |
anāryahuśṭamasvargya
makīrtikaramarjuna ||
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(kutaḥ tvā kaśmalam idam
viṣame samupasthitam |
anāryajuṣṭam asvargyam
akīrtikaram arjuna ||)
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Meaning :
bhagavān śrīkṛṣṇa said :
O arjuna! Where-from came this attachment to you, at this hour of peril? It is not fitting to the noble, it will yield you not heaven nor to glory.
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