Thursday, July 10, 2014

आज का श्लोक, ’सन्’ / ’san’

आज का श्लोक,  ’सन्’ /  ’san’   
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’सन्’ /  ’san’  - होने से, होने के कारण, होते हुए,

अध्याय 4, श्लोक 6,

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ॥
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(अजः अपि  सन् अव्यय-आत्मा भूतानाम् ईश्वरः अपि सन्
प्रकृतिं स्वाम् अधिष्ठाय संभवामि आत्म-मायया ॥)
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भावार्थ :
जन्मरहित और अविनाशी स्वरूपवाला परम-आत्मा होते हुए भी होते हुए भी, जन्म लेनेवाले और मर जानेवाले समस्त प्राणियों का नियमन करनेवाला होने से, मैं अपनी (त्रिगुणात्मिका) प्रकृति के माध्यम से अपनी आत्ममाया को धारण करता हुआ उसके अन्तर्गत देहधारी की तरह व्यक्त हो उठता हूँ ।
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’सन्’ /  ’san’ - because of being, because of that,  accordingly, 
  
Chapter 4, shloka 6,
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ajo:'pi sannavyayātmā 
bhūtānāmīśvaro:'pi san |
prakṛtiṃ svāmadhiṣṭhāya 
saṃbhavāmyātmamāyayā ||
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(ajaḥ api  san avyaya-ātmā 
bhūtānām īśvaraḥ api san |
prakṛtiṃ svām adhiṣṭhāya 
saṃbhavāmi ātma-māyayā ||)
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Meaning :
Though unborn and immutable, with the support of My (threefold) 'prakṛti' (name and form), I  ever manifest Myself through My own 'māyā' (Divine power).
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