आज का श्लोक, ’सर्गे’ / ’sarge’
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’सर्गे’ / ’sarge’ - संसार में,
अध्याय 7, श्लोक 27,
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥
--
(इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहम् सर्गे यान्ति परन्तप ॥)
--
भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन) ! संसार में अपने जन्म ही से, संसार में सम्पूर्ण प्राणी, इच्छा तथा द्वेष से उत्पन्न हो रहे सुख-दुःख आदि द्वन्द्वों से विभ्रम को प्राप्त हो रहे हैं ।
--
अध्याय 14, श्लोक 2,
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः ।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥
--
(इदम् ज्ञानम्-उपाश्रित्य मम साधर्म्यम् आगताः ।
सर्गे अपि न उपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥)
--
भावार्थ :
इस (ज्ञानों में भी उत्तम) ज्ञान को आश्रय बनाकर इसके माध्यम से मुझमें स्थित हुए मनुष्य न तो सृष्टि के आदि में न तो उत्पन्न होते हैं और न प्रलयकाल में व्यथित होते हैं ।
--
टिप्पणी : जो मनुष्य इस ’मैं’ वृत्ति के स्रोत को जानकर उस स्रोत में दृढ़ रहते हैं, वे इस वृत्ति के उदय-अस्त होने से प्रतीत होनेवाली ’व्यक्ति-सत्ता’ से अपना तादात्म्य नहीं रखते । यह ’व्यक्ति-सत्ता’ औपचारिक अस्तित्व है, जो न तो सतत् है, न शाश्वत् । जबकि इसका अधिष्ठान अविकारी परमात्म-चैतन्य है, जो सृष्टि या प्रलय से अप्रभावित रहता है ।
--
’सर्गे’ / ’sarge’ - in the creation, while one is born in a world.
Chapter 7, śloka 27,
icchādveṣasamutthena
dvandvamohena bhārata |
sarvabhūtāni sammohaṃ
sarge yānti parantapa ||
--
(icchādveṣasamutthena
dvandvamohena bhārata |
sarvabhūtāni sammoham
sarge yānti parantapa ||)
--
O bhārata (arjuna) !, from the very birth all beings are subject to delusion caused by the dualities like desire and envy, pleasure and pain.
--
Chapter 14, śloka 2,
idaṃ jñānamupāśritya
mama sādharmyamāgatāḥ |
sarge:'pi nopajāyante
pralaye na vyathanti ca ||
--
(idam jñānam-upāśritya
mama sādharmyam āgatāḥ |
sarge api na upajāyante
pralaye na vyathanti ca ||)
--
Meaning :
Having come across this wisdom, that is superior to all other knowledge(s), one attains ME, and shares MY Reality. Such a one is neither born with the appearance of manifestation (as a person in an apparent world), nor is in distress at the time of dissolution of such a manifestation.
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’सर्गे’ / ’sarge’ - संसार में,
अध्याय 7, श्लोक 27,
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥
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(इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहम् सर्गे यान्ति परन्तप ॥)
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भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन) ! संसार में अपने जन्म ही से, संसार में सम्पूर्ण प्राणी, इच्छा तथा द्वेष से उत्पन्न हो रहे सुख-दुःख आदि द्वन्द्वों से विभ्रम को प्राप्त हो रहे हैं ।
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अध्याय 14, श्लोक 2,
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः ।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥
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(इदम् ज्ञानम्-उपाश्रित्य मम साधर्म्यम् आगताः ।
सर्गे अपि न उपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥)
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भावार्थ :
इस (ज्ञानों में भी उत्तम) ज्ञान को आश्रय बनाकर इसके माध्यम से मुझमें स्थित हुए मनुष्य न तो सृष्टि के आदि में न तो उत्पन्न होते हैं और न प्रलयकाल में व्यथित होते हैं ।
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टिप्पणी : जो मनुष्य इस ’मैं’ वृत्ति के स्रोत को जानकर उस स्रोत में दृढ़ रहते हैं, वे इस वृत्ति के उदय-अस्त होने से प्रतीत होनेवाली ’व्यक्ति-सत्ता’ से अपना तादात्म्य नहीं रखते । यह ’व्यक्ति-सत्ता’ औपचारिक अस्तित्व है, जो न तो सतत् है, न शाश्वत् । जबकि इसका अधिष्ठान अविकारी परमात्म-चैतन्य है, जो सृष्टि या प्रलय से अप्रभावित रहता है ।
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’सर्गे’ / ’sarge’ - in the creation, while one is born in a world.
Chapter 7, śloka 27,
icchādveṣasamutthena
dvandvamohena bhārata |
sarvabhūtāni sammohaṃ
sarge yānti parantapa ||
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(icchādveṣasamutthena
dvandvamohena bhārata |
sarvabhūtāni sammoham
sarge yānti parantapa ||)
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O bhārata (arjuna) !, from the very birth all beings are subject to delusion caused by the dualities like desire and envy, pleasure and pain.
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Chapter 14, śloka 2,
idaṃ jñānamupāśritya
mama sādharmyamāgatāḥ |
sarge:'pi nopajāyante
pralaye na vyathanti ca ||
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(idam jñānam-upāśritya
mama sādharmyam āgatāḥ |
sarge api na upajāyante
pralaye na vyathanti ca ||)
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Meaning :
Having come across this wisdom, that is superior to all other knowledge(s), one attains ME, and shares MY Reality. Such a one is neither born with the appearance of manifestation (as a person in an apparent world), nor is in distress at the time of dissolution of such a manifestation.
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