Tuesday, July 1, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वगुह्यतमम्’ / ’sarvaguhyatamam’

आज का श्लोक,
’सर्वगुह्यतमम्’ /  ’sarvaguhyatamam’ 
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’सर्वगुह्यतमम्’ /  ’sarvaguhyatamam’ -  सर्वाधिक गूढ, अज्ञात और रहस्यपूर्ण,

अध्याय 18, श्लोक 64,
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सर्वगुह्यतमं भूयः शृणु मे परमं वचः ।
इष्टोऽसि मे दृढमिति  ततो वक्ष्यामि ते हितम् ॥
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(सर्वगुह्यतमम् भूयः शृणु मे परमं वचः ।
इष्टः असि मे दृढम् इति  ततः वक्ष्यामि ते हितम् ॥)
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भावार्थ :
यद्यपि यह ज्ञान सर्वाधिक गूढ और गूढतम है, तथापि  मैं पुनः एक बार तुमसे ये तुम्हारे लिए परम हितकारी वचन कह रहा हूँ। मेरे इन वचनों को सुनो ( हे अर्जुन!) क्योंकि तुम मेरे इष्ट हो, दृढ और परम भक्त हो।
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’सर्वगुह्यतमम्’ /  ’sarvaguhyatamam’ - most secret, hidden, revealed to a very few,

Chapter 18, śloka 64,

sarvaguhyatamaṃ bhūyaḥ
śṛṇu me paramaṃ vacaḥ |
iṣṭo:'si  me dṛḍhamiti
tato vakṣyāmi te hitam ||
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(sarvaguhyatamaṃ bhūyaḥ
śṛṇu me paramaṃ vacaḥ |
iṣṭaḥ asi me dṛḍham iti
tataḥ vakṣyāmi te hitam ||)
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Meaning :
O Arjuna! Now once again listen to my most secret wisdom that I am revealing before you, for your ultimate good and benefit only, because you are extremely dear to me.
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