Sunday, August 17, 2014

आज का श्लोक, ’विभूतिमत्’ / ’vibhūtimat’

आज का श्लोक,
’विभूतिमत्’ / ’vibhūtimat’ 
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’विभूतिमत्’ / ’vibhūtimat’ - किसी विशेषता सहित, महिमामय,

अध्याय 10, श्लोक 41,

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥
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(यत् यत् विभूतिमत् सत्त्वम् श्रीमत् ऊर्जितम् एव वा।
तत् तत् एव अवगच्छ त्वम् मम तेजः अंशसम्भवम् ॥)
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(तेजोंऽशसम्भवम्  -  तेजः अंश सम्भवम्)
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भावार्थ :
जो जो भी असाधारण विशेषता युक्त, ऐश्वर्य से पूर्ण, और प्राणवान तत्त्व दिखलाई देता है, उस सभी को तुम मेरे ही तेज के अंश से उत्पन्न हुआ जानो ।

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’विभूतिमत्’ / ’vibhūtimat’ - associated with an excellent incredible glorious quality,  

Chapter 10, śloka 41,

yadyadvibhūtimatsattvaṃ 
śrīmadūrjitameva vā|
tattadevāvagaccha tvaṃ 
mama tejoṃ:'śasambhavam ||
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(yat yat vibhūtimat sattvam 
śrīmat ūrjitam eva vā|
tat tat eva avagaccha tvam 
mama tejaḥ aṃśa-sambhavam ||)
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(tejoṃ:'śasambhavam  -  tejaḥ aṃśa sambhavam)
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Meaning :
Know well, whatever is extra-ordinarily glorious, resplendent, or powerful, that everything is born of a part of My own Splendor.
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