आज का श्लोक,
’विद्याविनयसंपन्ने’ / ’vidyāvinayasaṃpanne’
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’विद्याविनयसंपन्ने’ / ’vidyāvinayasaṃpanne’
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’विद्याविनयसंपन्ने’ / ’vidyāvinayasaṃpanne’ - जो विद्या (ज्ञान) तथा विनय (नम्रता) से युक्त है, ऐसे मनुष्य में,
अध्याय 5, श्लोक 18,
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विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥
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(विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥)
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भावार्थ :
तत्ववेत्ता, विद्याविनय से संपन्न ब्राह्मण में, गौओं, हाथियों, श्वानों तथा श्वपचों (कुत्ते का मांस खानेवाले), सभी में समान रूप से विद्यमान उसी एकमेव चैतन्य परब्रह्म को देखते हैं ।
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’विद्याविनयसंपन्ने’ / ’vidyāvinayasaṃpanne’ - (along-with) One who is learned and well-mannered,
Chapter 5, śloka 18,
vidyāvinayasaṃpanne
brāhmaṇe gavi hastini |
śuni caiva śvapāke ca
paṇḍitāḥ samadarśinaḥ ||
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(vidyāvinayasaṃpanne
brāhmaṇe gavi hastini |
śuni caiva śvapāke ca
paṇḍitāḥ samadarśinaḥ ||)
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Meaning :
A truly wise one who has known Reality /brahman' /'Self' sees the same in them all. In a learned well-behaved brāhmaṇa , in a cow, elephant, dog and even in an outcast (who feeds on dogs).
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