आज का श्लोक, ’विष्ठितम्’ / ’viṣṭhitam’
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’विष्ठितम्’ / ’viṣṭhitam’ - प्रविष्ट, अवस्थित,
अध्याय 13, श्लोक 17,
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥
--
(ज्योतिषाम् अपि तत् ज्योतिः तमसः परम् उच्यते ।
ज्ञानम् ज्ञेयम् ज्ञानगम्यम् हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥)
--
भावार्थ :
समस्त ज्योतिर्मय पिंडों में स्थित स्थूल (इंद्रियग्राह्य) ज्योति की तुलना में उसी ज्योति को से श्रेष्ठ कहा गया है, जो सबके हृदय में ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञानगम्य तीनों रूपों में प्रविष्ट है ।
--
टिप्पणी :
विष्ठितः स विष्णुः > विष्ठितः सः विष्णुः >
जो (चेतना की तरह से) प्राणिमात्र के हृदय में अनुप्रविष्ट है, वह है विष्णु, ...
’विष्ठितम्’ / ’viṣṭhitam’ - Entered into, supports,
Chapter 13, śloka 17,
jyotiṣāmapi tajjyotis-
tamasaḥ paramucyate |
jñānaṃ jñeyaṃ jñānagamyaṃ
hṛdi sarvasya viṣṭhitam ||
--
(jyotiṣām api tat jyotiḥ
tamasaḥ param ucyate |
jñānam jñeyam jñānagamyam
hṛdi sarvasya viṣṭhitam ||)
--
Meaning :
It is the light of all lights, different from darkness, It is the Enlightenment, comprehensible and within the capacity of understanding. It is already and ever there available accessible and inherent in the Heart of all beings.
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’विष्ठितम्’ / ’viṣṭhitam’ - प्रविष्ट, अवस्थित,
अध्याय 13, श्लोक 17,
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥
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(ज्योतिषाम् अपि तत् ज्योतिः तमसः परम् उच्यते ।
ज्ञानम् ज्ञेयम् ज्ञानगम्यम् हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥)
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भावार्थ :
समस्त ज्योतिर्मय पिंडों में स्थित स्थूल (इंद्रियग्राह्य) ज्योति की तुलना में उसी ज्योति को से श्रेष्ठ कहा गया है, जो सबके हृदय में ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञानगम्य तीनों रूपों में प्रविष्ट है ।
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टिप्पणी :
विष्ठितः स विष्णुः > विष्ठितः सः विष्णुः >
जो (चेतना की तरह से) प्राणिमात्र के हृदय में अनुप्रविष्ट है, वह है विष्णु, ...
Chapter 13, śloka 17,
jyotiṣāmapi tajjyotis-
tamasaḥ paramucyate |
jñānaṃ jñeyaṃ jñānagamyaṃ
hṛdi sarvasya viṣṭhitam ||
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(jyotiṣām api tat jyotiḥ
tamasaḥ param ucyate |
jñānam jñeyam jñānagamyam
hṛdi sarvasya viṣṭhitam ||)
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Meaning :
It is the light of all lights, different from darkness, It is the Enlightenment, comprehensible and within the capacity of understanding. It is already and ever there available accessible and inherent in the Heart of all beings.
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Note :
viṣṭhitaḥ sa viṣṇuḥ > viṣṭhitaḥ saḥ viṣṇuḥ
Meaning :
One Who abides (as consciousness) in the core of heart of all being is viṣṇu.
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