आज का श्लोक, ’विमृश्य’ / ’vimṛśya’
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’विमृश्य’ / ’vimṛśya’ - विमर्श करके, विवेचन के द्वारा,
अध्याय 18, श्लोक 63,
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया ।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ॥
--
(इति ते ज्ञानम् आख्यातम् गुह्यात् गुह्यतरम् मया ।
विमृश्य एतत् अशेषेण यथा इच्छसि तथा कुरु ॥)
--
भावार्थ :
इस प्रकार से मेरे द्वारा तुम्हारे लिए गुह्य से भी अधिक गुह्य ज्ञान की व्याख्या कर दी गई । इस पर ध्यान से भलीभाँति पूर्ण विचार करो, और तुम्हारी जो इच्छा हो (जो तुम्हें उचित जान पड़े) वह करो ।
--
’विमृश्य’ / ’vimṛśya’ - having deduced, concluding through investigation,
Chapter 18, śloka 63,
iti te jñānamākhyātaṃ
guhyādguhyataraṃ mayā |
vimṛśyaitadaśeṣeṇa
yathecchasi tathā kuru ||
--
(iti te jñānam ākhyātam
guhyāt guhyataram mayā |
vimṛśya etat aśeṣeṇa
yathā icchasi tathā kuru ||)
--
Meaning :
In this way I have enunciated before you the essence of the most secret eternal wisdom. Carefully investigate this and do as you like.
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’विमृश्य’ / ’vimṛśya’ - विमर्श करके, विवेचन के द्वारा,
अध्याय 18, श्लोक 63,
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया ।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ॥
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(इति ते ज्ञानम् आख्यातम् गुह्यात् गुह्यतरम् मया ।
विमृश्य एतत् अशेषेण यथा इच्छसि तथा कुरु ॥)
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भावार्थ :
इस प्रकार से मेरे द्वारा तुम्हारे लिए गुह्य से भी अधिक गुह्य ज्ञान की व्याख्या कर दी गई । इस पर ध्यान से भलीभाँति पूर्ण विचार करो, और तुम्हारी जो इच्छा हो (जो तुम्हें उचित जान पड़े) वह करो ।
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’विमृश्य’ / ’vimṛśya’ - having deduced, concluding through investigation,
Chapter 18, śloka 63,
iti te jñānamākhyātaṃ
guhyādguhyataraṃ mayā |
vimṛśyaitadaśeṣeṇa
yathecchasi tathā kuru ||
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(iti te jñānam ākhyātam
guhyāt guhyataram mayā |
vimṛśya etat aśeṣeṇa
yathā icchasi tathā kuru ||)
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Meaning :
In this way I have enunciated before you the essence of the most secret eternal wisdom. Carefully investigate this and do as you like.
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