Thursday, August 28, 2014

आज का श्लोक, ’विना’ / ’vinā’

आज का श्लोक,  ’विना’ /  ’vinā’
___________________________

’विना’ / vinā  - से रहित, के बिना,

अध्याय 10, श्लोक 39,
--
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरं ॥
--
(यत् च अपि सर्वभूतानाम् बीजं तत्-अहम्-अर्जुन ।
न तत्-अस्ति विना यत्-स्यात्-मया भूतं चराचरं )
--
भावार्थ :
और हे अर्जुन! सारे भूत-समुदायों का जो एकमात्र कारण है, वह भी मैं ही हूँ, क्योंकि चर-अचर में ऐसा कहीं कुछ नहीं है जो मुझसे रहित हो ।
--
’विना’ / vinā - without, in the absence of,

Chapter 10, śloka 39,

yaccāpi sarvabhūtānāṃ
bījaṃ tadahamarjuna |
na tadasti vinā yatsyān-
mayā bhūtaṃ carācaraṃ ||
--
(yat ca api sarvabhūtānām
bījaṃ tat-aham-arjuna |
na tat-asti vinā yat-syāt-
mayā bhūtaṃ carācaraṃ )
--
Meaning :
O arjuna! Whatever is the seed of all the beings - sentient or insentient,  It is I AM alone.There is nothing that could exist without Me.
--

No comments:

Post a Comment