आज का श्लोक,
’विनाशम्’ / ’vināśam’
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’विनाशम्’ / ’vināśam’ - विनाश होना, न हो जाना,
अध्याय 2, श्लोक 17,
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
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(अविनाशि तु तत् विद्धि येन सर्वम् इदम् ततम् ।
विनाशम् अव्ययस्य अस्य न कश्चित् कर्तुम् अर्हति ॥)
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भावार्थ :
नाशरहित तो (तुम) उसको जानो जिससे यह सम्पूर्ण (दृश्य जगत् एवम् दृष्टा भी) व्याप्त है । स्वरूप से ही अविनाशी इस तत्व का जो सबसे / सबमें व्याप्त है, कोई कर सके, ऐसा सक्षम कोई नहीं है ।
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’विनाशम्’ / ’vināśam’
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’विनाशम्’ / ’vināśam’ - विनाश होना, न हो जाना,
अध्याय 2, श्लोक 17,
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
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(अविनाशि तु तत् विद्धि येन सर्वम् इदम् ततम् ।
विनाशम् अव्ययस्य अस्य न कश्चित् कर्तुम् अर्हति ॥)
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भावार्थ :
नाशरहित तो (तुम) उसको जानो जिससे यह सम्पूर्ण (दृश्य जगत् एवम् दृष्टा भी) व्याप्त है । स्वरूप से ही अविनाशी इस तत्व का जो सबसे / सबमें व्याप्त है, कोई कर सके, ऐसा सक्षम कोई नहीं है ।
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’विनाशम्’ / ’vināśam’ - destruction, perishing, annihilation, extinction,
Chapter 2, śloka 17,
avināśi tu tadviddhi
yena sarvamidaṃ tatam |
vināśamavyayāsya
na kaścitkartumarhati ||
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(avināśi tu tat viddhi
yena sarvam idam tatam |
vināśam avyayasya asya
na kaścit kartum arhati ||)
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Meaning :
Know that, That (brahman), Which is imperishable pervades all this universe. No one is capable to destroy this imperishable principle, (Brahman).
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