Thursday, August 28, 2014

आज का श्लोक, ’विनाशम्’ / ’vināśam’

आज का श्लोक,
’विनाशम्’ / ’vināśam’ 
____________________

’विनाशम्’ / ’vināśam’ - विनाश होना, न हो जाना,
  
अध्याय 2, श्लोक 17,

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
--
(अविनाशि तु तत् विद्धि येन सर्वम् इदम् ततम् ।
विनाशम् अव्ययस्य अस्य न कश्चित् कर्तुम् अर्हति ॥)
--
भावार्थ :
नाशरहित तो (तुम) उसको जानो जिससे यह सम्पूर्ण (दृश्य जगत् एवम् दृष्टा भी) व्याप्त है । स्वरूप से ही अविनाशी इस तत्व का जो सबसे / सबमें व्याप्त है, कोई कर सके, ऐसा सक्षम कोई नहीं है ।
--
’विनाशम्’ / ’vināśam’ - destruction, perishing, annihilation, extinction,

Chapter 2, śloka 17,

avināśi tu tadviddhi 
yena sarvamidaṃ tatam |
vināśamavyayāsya 
na kaścitkartumarhati ||
--
(avināśi tu tat viddhi 
yena sarvam idam tatam |
vināśam avyayasya asya 
na kaścit kartum arhati ||)
--
Meaning :
Know that, That (brahman), Which is imperishable pervades all this universe. No one is capable to destroy this imperishable principle, (Brahman).
--

No comments:

Post a Comment