Wednesday, August 27, 2014

आज का श्लोक, ’विपश्चितः’ / ’vipaścitaḥ’

आज का श्लोक,
’विपश्चितः’ / ’vipaścitaḥ’
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’विपश्चितः’ / ’vipaścitaḥ’ - बुद्धिमान का,

अध्याय 2, श्लोक 60,
यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥
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(यततः हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥)
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भावार्थ :
हे कौन्तेय (अर्जुन )! अभ्यास में संलग्न विचारशील मनुष्य की भी इन्द्रियाँ, उसके न चाहते हुए भी बरबस ही उसके विवेक-वैराग्ययुक्त मन को व्याकुल और विचलित कर विषयों की ओर आकृष्ट कर देती हैं।
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’विपश्चितः’ / ’vipaścitaḥ’ - of one having wisdom / of a man having the understanding of Reality,

Chapter 2, śloka 60,

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥
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(यततः हि अपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥)
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Meaning :
O kaunteya (Arjuna!) Though a man of understanding, when such a wise one tries to control them, the senses (sense-organs) forcibly take his mind away towards the pleasures one has been habitual to.

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