Saturday, August 30, 2014

आज का श्लोक, ’वितताः’ / ’vitatāḥ’

आज का श्लोक, ’वितताः’ / ’vitatāḥ
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’वितताः’ / ’vitatāḥ’ -विस्तारपूर्वक कहे गए,

अध्याय 4, श्लोक 32,

एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे ।
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥
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(एवम् बहुविधाः यज्ञाः वितताः ब्रह्मणः मुखे ।
कर्मजान् विद्धि तान् सर्वान् एवम् ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥)
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भावार्थ :
इस प्रकार से जिन विविध और अनेक प्रकार के विविध यज्ञ वेद के मुख से कहे गए हैं, उन सभी का अनुष्ठान मन-बुद्धि, इन्द्रिय, तथा शरीर के माध्यम से, अर्थात् ’कर्म’ से ही पूर्ण होता है, यह जानने पर तुम (कर्म एवं कर्म-बन्धन) से छूट जाओगे ।
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’वितताः’ / ’vitatāḥ’ - taught in detail,

Chapter 4, śloka 32,

evaṃ bahuvidhā yajñā
vitatā brahmaṇo mukhe |
karmajānviddhi tānsarvan-
evaṃ jñātvā vimokṣyase ||
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(evam bahuvidhāḥ yajñāḥ
vitatāḥ brahmaṇaḥ mukhe |
karmajān viddhi tān sarvān
evam jñātvā vimokṣyase ||)
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Meaning :
In this way veda described many different kinds of sacrifices / 'yajña-s', that are performed only with the help of action (karma) through body, heart and mind, and intellect, knowing this, you shall be liberated (from the bondage of ’karma’ and ’karma-bandhana’).
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