Wednesday, August 13, 2014

आज का श्लोक, ’विश्वस्य’ / ’viśvasya’

आज का श्लोक, ’विश्वस्य’ / ’viśvasya’
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’विश्वस्य’ / ’viśvasya’  - सम्पूर्ण विश्व के,

अध्याय 11, श्लोक 18,

त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं
त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता
सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे ॥
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(त्वम् अक्षरम् परमम् वेदितव्यम्
त्वम् अस्य विश्वस्य परम् निधानम्
त्वम् अव्ययः शाश्वत-धर्मगोप्ता
सनातनः त्वम् पुरुषः मतः मे ॥)
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भावार्थ :
आप ही एकमेव जानने योग्य परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व हैं, आप ही इस संपूर्ण विश्व के अधिष्ठान / आश्रय हैं, आप ही अनश्वर धर्म के नित्य रक्षा करनेवाले हैं, और आप ही  सदा रहनेवाले नित्य परम पुरुष हैं ऐसा मेरा मत है ।
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अध्याय 11, श्लोक 38,

त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण-
स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
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(त्वम् आदिदेवः पुरुषः पुराणः
त्वम् अस्य विश्वस्य परम् निधानम् ।
वेत्ता असि वेद्यम् च परम् निधानम्
त्वया ततम् विश्वम् अनन्तरूप ॥
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भावार्थ :
आप आदिदेव हैं, पुरुष सनातन हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय हैं । आप ही एकमात्र जाननेवाले (ज्ञाता), जिसे जाना जाता है वह जानने-योग्य तत्व (ज्ञेय), तथा परम धाम हैं, हे अनन्तरूप! समस्त विश्व आपसे ओत-प्रोत है ।
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’विश्वस्य’ / ’viśvasya’  - for the whole universe,

Chapter 11, śloka 18,

tvamakṣaraṃ paramaṃ veditavyaṃ
tvamasya viśvasya paraṃ nidhānam |
tvamavyayaḥ śāśvatadharmagoptā
sanātanastvaṃ puruṣo mato me ||
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(tvam akṣaram paramam veditavyam
tvam asya viśvasya param nidhānam
tvam avyayaḥ śāśvata-dharmagoptā
sanātanaḥ tvam puruṣaḥ mataḥ me ||)
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Meaning :
You are alone the One Imperishable, The Supreme, ever worth-knowing, You are the only support of the whole world, You alone protect and save the virtue-eternal (śāśvata-dharma) for ever, It is my firm conviction that You are alone -The Self (ātman), and prevail at all times,
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 Chapter 11, śloka 38,

tvamādidevaḥ puruṣaḥ purāṇa-
stvamasya viśvasya paraṃ nidhānam |
vettāsi vedyaṃ ca paraṃ ca dhāma
tvayā tataṃ viśvamanantarūpa||
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(tvam ādidevaḥ puruṣaḥ purāṇaḥ
tvam asya viśvasya param nidhānam |
vettā asi vedyam ca param nidhānam
tvayā tatam viśvam anantarūpa ||
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Meaning :
You are the Divinity prime (ādideva), Spirit (puruṣa) Eternal (purāṇa), You are The abode supreme of this All (viśva), O Manifest in Infinite forms (anantarūpa) ! You pervade all this existence.
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