Thursday, August 28, 2014

आज का श्लोक, ’विद्मः’ / ’vidmaḥ’

आज का श्लोक, ’विद्मः’ / ’vidmaḥ’
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’विद्मः’ / ’vidmaḥ’ - (हम) जानते हैं कि,

अध्याय 2, श्लोक 6,
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न चैतविद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषामस्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥
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(न च एतत् विद्मः कतरन् नः गरीयः यत् वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यान् एव हत्वा न जिजीविषामः ते अवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥)
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भावार्थ :
हमें तो यह भी निश्चय नहीं कि हमारे सम्मुख अवस्थित जिन धार्तराष्ट्रों (धृतराष्ट्रपुत्रों) को मरकर हम जीना भी न चाहेंगे, युद्ध में हम उन्हें जीतेंगे, या वे ही हमको, और न इस बात का निश्चय है कि दोनों संभावनाओं में से कौन सी गरिमायुक्त है ।
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’विद्मः’ / ’vidmaḥ’ - we do know,

Chapter 2, śloka 6,

na caitavidmaḥ kataranno garīyo
yadvā jayema yadi vā no jayeyuḥ |
yāneva hatvā na jijīviṣāmas-
te:'vasthitāḥ pramukhe dhārtarāṣṭrāḥ ||
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(na ca etat vidmaḥ kataran naḥ garīyaḥ
yat vā jayema yadi vā no jayeyuḥ |
yān eva hatvā na jijīviṣāmaḥ
te avasthitāḥ pramukhe dhārtarāṣṭrāḥ ||)
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Meaning :
While killing these very people, the sons of dhṛtarāṣṭra, who are opposite to us on this battle-field, we don't even know whether we shall win over them, or they on us. We also don't know which one of these two possibilities is the better...
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