Saturday, August 30, 2014

आज का श्लोक, ’विजानीतः’ / ’vijānītaḥ’

आज का श्लोक,
’विजानीतः’ / ’vijānītaḥ’ 
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’विजानीतः’ / ’vijānītaḥ’ - (वे दोनों) जानते हैं,
(’ज्ञा’ > जानाति, जानीतः जानन्ति, लत्, वर्तमान-काल, द्विवचन)
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अध्याय 2, श्लोक 19,

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥
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(य एनम्  वेत्ति हन्तारम्  यः च ऐनम्  मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतः न अयम्  हन्ति न हन्यते ॥)
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भावार्थ :
जो इस (आत्मा) को मारनेवाला मानता है, तथा जो इस (आत्मा) को मारा जानेवाला  मानता है, वे दोनों यह नहीं जानते कि यह (आत्मा) न तो किसी को मारती है, और न ही इस (आत्मा) को कोई मार सकता है।
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’विजानीतः’ / ’vijānītaḥ’  - (the two, both) know, (verb ’ज्ञा’/ ’jñā’ > to know,  third person dual, present tense)

Chapter 2, śloka 19,

ya enaṃ vetti hantāraṃ 
yaścainaṃ manyate hatam|
ubhau tau na vijānīto 
nāyaṃ hanti na hanyate ||
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(ya enam  vetti hantāram  
yaḥ ca ainam  manyate hatam|
ubhau tau na vijānītaḥ 
na ayam hanti na hanyate ||)
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Meaning :
Neither one who believes this 'Self' (Atman) is the slayer, nor one who believes this 'Self' (Atman) is slain know the truth. For the 'Self' (Atman) neither slays, nor is slain.
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