आज का श्लोक, ’विचालयेत्’ / ’vicālayet’
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’विचालयेत्’ / ’vicālayet’ - विचलित करे, भ्रमित करे,
अध्याय 3, श्लोक 29,
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविद न विचालयेत् ॥
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(प्रकृतेः गुण-सम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तान् अकृत्स्नविदः मन्दान् कृत्स्नविद् न विचालयेत् ॥)
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भावार्थ :
प्रकृति के गुणों से जिनकी बुद्धि मोहित होती है, वे उन गुणों और उनसे जुड़े कर्मों में आसक्त रहते हैं, इसलिए जो ज्ञानी तत्व को ठीक से, पूरी तरह से जान चुके हैं, उन ज्ञानियों को चाहिए कि वे मन्दबुद्धि उन अज्ञानियों (की बुद्धि) को, जो कि तत्व को ठीक से, पूरी तरह से नहीं जानते, विचलित न करें ।
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’विचालयेत्’ / ’vicālayet’ - should confuse, should put in doubt,
Chapter 3, śloka 29,
prakṛterguṇasammūḍhāḥ
sajjante guṇakarmasu |
tānakṛtsnavido mandān-
kṛtsnavida na vicālayet ||
--
(prakṛteḥ guṇa-sammūḍhāḥ
sajjante guṇakarmasu |
tān akṛtsnavidaḥ mandān
kṛtsnavid na vicālayet ||)
--
Meaning :
Those whose minds are deluded by the attributes (guṇa) and actions (karma) caused by Manifestation (prakṛti) keep on indulging in them. The one of perfect understanding (of Reality), wisdom, should never confuse the minds of such men of imperfect understanding.
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’विचालयेत्’ / ’vicālayet’ - विचलित करे, भ्रमित करे,
अध्याय 3, श्लोक 29,
प्रकृतेर्गुणसम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविद न विचालयेत् ॥
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(प्रकृतेः गुण-सम्मूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु ।
तान् अकृत्स्नविदः मन्दान् कृत्स्नविद् न विचालयेत् ॥)
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भावार्थ :
प्रकृति के गुणों से जिनकी बुद्धि मोहित होती है, वे उन गुणों और उनसे जुड़े कर्मों में आसक्त रहते हैं, इसलिए जो ज्ञानी तत्व को ठीक से, पूरी तरह से जान चुके हैं, उन ज्ञानियों को चाहिए कि वे मन्दबुद्धि उन अज्ञानियों (की बुद्धि) को, जो कि तत्व को ठीक से, पूरी तरह से नहीं जानते, विचलित न करें ।
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’विचालयेत्’ / ’vicālayet’ - should confuse, should put in doubt,
Chapter 3, śloka 29,
prakṛterguṇasammūḍhāḥ
sajjante guṇakarmasu |
tānakṛtsnavido mandān-
kṛtsnavida na vicālayet ||
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(prakṛteḥ guṇa-sammūḍhāḥ
sajjante guṇakarmasu |
tān akṛtsnavidaḥ mandān
kṛtsnavid na vicālayet ||)
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Meaning :
Those whose minds are deluded by the attributes (guṇa) and actions (karma) caused by Manifestation (prakṛti) keep on indulging in them. The one of perfect understanding (of Reality), wisdom, should never confuse the minds of such men of imperfect understanding.
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