Sunday, August 31, 2014

आज का श्लोक, ’विगतेच्छाभयक्रोधः’ / ’vigatecchābhayakrodhaḥ’

आज का श्लोक,
’विगतेच्छाभयक्रोधः’ / ’vigatecchābhayakrodhaḥ’ 
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’विगतेच्छाभयक्रोधः’ / ’vigatecchābhayakrodhaḥ’  - इच्छा, भय तथा क्रोध से मुक्त,

अध्याय 5, श्लोक 28,

यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः ।
विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥
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(यतेन्द्रियमनोबुद्धिः मुनिः मोक्षपरायणः ।
विगतेच्छाभयक्रोधः यः सदा मुक्तः एव सः॥)
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भावार्थ :
जो मुमुक्षु मुनि इन्द्रियों मन (अवधान) तथा बुद्धि (अर्थात् मन की प्रवृत्ति) को यत्नपूर्वक साधते हुए, इच्छा, भय तथा क्रोध से जो उनसे मुक्त रहता है, वह सदा ही मुक्त होता है ।
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’विगतेच्छाभयक्रोधः’ / ’vigatecchābhayakrodhaḥ’ - free from desire, fear and anger, 

Chapter 5, śloka 28,

yatendriyamanobuddhir-
munirmokṣaparāyaṇaḥ |
vigatecchābhayakrodho 
yaḥ sadā mukta eva saḥ ||
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(yatendriyamanobuddhiḥ 
muniḥ mokṣaparāyaṇaḥ |
vigatecchābhayakrodhaḥ 
yaḥ sadā muktaḥ eva saḥ||)
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Meaning :
The seeker after liberation, who practices yoga by keeping the senses, mind and intellect together in order, one who is free from desire, fear and anger is already liberated in life, and for ever.
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