आज का श्लोक, ’विसृजन्’ / ’visṛjan’
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’विसृजन्’ / ’visṛjan’ - त्यागते हुए,
अध्याय 5, श्लोक 9,
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ।
इन्द्रियाणीन्द्रार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥
--
(प्रलपन् विसृजन् गृह्णन् उन्मिषन् निमिषन् अपि ।
इन्द्रियाणि इन्द्रियार्थेषु वर्तन्ते इति धारयन् ॥)
--
भावार्थ :
बोलते हुए, त्यागते हुए, ग्रहण करते हुए, नेत्र खोलते और नेत्र बन्द करते हुए भी, इन्द्रियाँ उनके अपने-अपने विषयों में अपना कार्य करती हैं ऐसा समझते हुए,...
--
’विसृजन्’ / ’visṛjan’ - releasing, while giving up,
Chapter 5, śloka 9,
pralapanvisṛjangṛhṇann-
unmiṣannimiṣannapi |
indriyāṇīndrārtheṣu
vartanta iti dhārayan ||
--
(pralapan visṛjan gṛhṇan
unmiṣan nimiṣan api |
indriyāṇi indriyārtheṣu
vartante iti dhārayan ||)
--
Meaning :
While talking, excreting, grasping, opening or shutting the eyes, realizing that the senses play their role in relation to their objects and is not disturbed in any way.
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’विसृजन्’ / ’visṛjan’ - त्यागते हुए,
अध्याय 5, श्लोक 9,
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि ।
इन्द्रियाणीन्द्रार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥
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(प्रलपन् विसृजन् गृह्णन् उन्मिषन् निमिषन् अपि ।
इन्द्रियाणि इन्द्रियार्थेषु वर्तन्ते इति धारयन् ॥)
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भावार्थ :
बोलते हुए, त्यागते हुए, ग्रहण करते हुए, नेत्र खोलते और नेत्र बन्द करते हुए भी, इन्द्रियाँ उनके अपने-अपने विषयों में अपना कार्य करती हैं ऐसा समझते हुए,...
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’विसृजन्’ / ’visṛjan’ - releasing, while giving up,
Chapter 5, śloka 9,
pralapanvisṛjangṛhṇann-
unmiṣannimiṣannapi |
indriyāṇīndrārtheṣu
vartanta iti dhārayan ||
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(pralapan visṛjan gṛhṇan
unmiṣan nimiṣan api |
indriyāṇi indriyārtheṣu
vartante iti dhārayan ||)
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Meaning :
While talking, excreting, grasping, opening or shutting the eyes, realizing that the senses play their role in relation to their objects and is not disturbed in any way.
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