आज का श्लोक,
’विश्वतोमुखम्’ / ’viśvatomukham’
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’विश्वतोमुखम्’ / ’viśvatomukham’ - विराट् स्वरूपयुक्त परमेश्वर की, विभिन्न रूपाकारों में,
अध्याय 9, श्लोक 15,
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते ।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥
--
(ज्ञानयज्ञेन च अपि अन्ये यजन्तः माम् उपासते ।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥)
--
भावार्थ :
इसी प्रकार से दूसरे भी ज्ञानीजन ज्ञानयज्ञ का अनुष्ठान करते हुए मुझे अपने से अनन्य (अभिन्न और एकमेव) जानकर मेरी उपासना करते हैं । वहीं अन्य बहुत से भक्त मुझ विराट स्वरूपयुक्त परमेश्वर की उपासना पृथक् (अर्थात् माता, पिता, स्वामी, सखा या वात्सल्य भाव से भी मेरे बाल-रूप) के भाव से इष्ट मानकर करते हैं ।
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अध्याय 11, श्लोक 11,
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ॥
--
(दिव्यमाल्याम्बरधरम् दिव्यगन्धानुलेपम् ।
सर्वाश्चर्यमयम् देवमनन्तम् विश्वतोमुखम् ॥)
--
भावार्थ :
दिव्य माला एवं वस्त्र धारण किए हुए, दिव्य गन्ध का लेप शरीर पर किए हुए, सब प्रकार से आश्चर्य से युक्त, अनन्त तथा सब ओर मुख है (सर्वत्र समक्ष) जिनका ऐसे विराट्-स्वरूपवाले, परमेश्वर को (अर्जुन ने देखा) ।
--
’विश्वतोमुखम्’ / ’viśvatomukham’ - in My all and various different forms,
Chapter 9, śloka 15,
jñānayajñena cāpyanye
yajanto māmupāsate |
ekatvena pṛthaktvena
bahudhā viśvatomukham ||
--
(jñānayajñena ca api anye
yajantaḥ mām upāsate |
ekatvena pṛthaktvena
bahudhā viśvatomukham ||)
--
Meaning :
In the same way, some of My devotees worship Me by means of sacrifice (yajña) / Yoga of knowledge (jñānayajña) by undivided whole dedication to Me, while others also worship Me in different and many forms with sincere devotion.
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’विश्वतोमुखम्’ / ’viśvatomukham’
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’विश्वतोमुखम्’ / ’viśvatomukham’ - विराट् स्वरूपयुक्त परमेश्वर की, विभिन्न रूपाकारों में,
अध्याय 9, श्लोक 15,
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते ।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥
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(ज्ञानयज्ञेन च अपि अन्ये यजन्तः माम् उपासते ।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥)
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भावार्थ :
इसी प्रकार से दूसरे भी ज्ञानीजन ज्ञानयज्ञ का अनुष्ठान करते हुए मुझे अपने से अनन्य (अभिन्न और एकमेव) जानकर मेरी उपासना करते हैं । वहीं अन्य बहुत से भक्त मुझ विराट स्वरूपयुक्त परमेश्वर की उपासना पृथक् (अर्थात् माता, पिता, स्वामी, सखा या वात्सल्य भाव से भी मेरे बाल-रूप) के भाव से इष्ट मानकर करते हैं ।
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अध्याय 11, श्लोक 11,
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ॥
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(दिव्यमाल्याम्बरधरम् दिव्यगन्धानुलेपम् ।
सर्वाश्चर्यमयम् देवमनन्तम् विश्वतोमुखम् ॥)
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भावार्थ :
दिव्य माला एवं वस्त्र धारण किए हुए, दिव्य गन्ध का लेप शरीर पर किए हुए, सब प्रकार से आश्चर्य से युक्त, अनन्त तथा सब ओर मुख है (सर्वत्र समक्ष) जिनका ऐसे विराट्-स्वरूपवाले, परमेश्वर को (अर्जुन ने देखा) ।
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Chapter 9, śloka 15,
jñānayajñena cāpyanye
yajanto māmupāsate |
ekatvena pṛthaktvena
bahudhā viśvatomukham ||
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(jñānayajñena ca api anye
yajantaḥ mām upāsate |
ekatvena pṛthaktvena
bahudhā viśvatomukham ||)
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Meaning :
In the same way, some of My devotees worship Me by means of sacrifice (yajña) / Yoga of knowledge (jñānayajña) by undivided whole dedication to Me, while others also worship Me in different and many forms with sincere devotion.
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Chapter 11, śloka 11,
divyamālyāmbaradharaṃ
divyagandhānulepanam |
sarvāścaryamayaṃ devam-
anantaṃ viśvatomukham ||
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(divyamālyāmbaradharam
divyagandhānulepam |
sarvāścaryamayam devam-
anantam viśvatomukham ||)
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Meaning :
Wearing celestial garland and clothed in celestial apparel, anointed with divine perfumes and ointments, made up of all wonders, and having faces in all directions. (Thus Arjuna saw Lord śrīkṛṣṇa)
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